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सिंधी भापा पार्श्व स्तवन
१६३ फल फूलै ढाली थकी रे लाल,
छाव छदाम विकाय हे सहेली ॥ ६ मो० ॥ ऊ ची अधिक चढाय नै रे लाल,
नाखी धरि ध्रसकाय हे सहेली। प्रीतम क्यु मुझ परिहरी रे लाल,
अवगुण एक बताय हे सहेली ॥७ मो॥ मुगति कामिणी कामण कीया रे लाल,
तो मुझ न तजी न्याय हे सहेली। सिव नारी देखण सही रे लाल,
आप गइ उम्हाय हे सहेली ।। ८ मो० ॥ मुगति माहे बेहु मिल्या रे लाल,
विलसैं सुख वरदाय हे सहेली। प्रणमें पंडित धरमसी रे लाल,
नमता नव निधि थाय हे सहेली । मो० ॥
सिधी भाषामय पार्श्वनाथ स्तवन
ढाल-अमल कमल राहनी। अज्जु सफल अवतार असाड़ा, दिठ्ठा पारस देव ।
बुट्ठा मेह, अमियदा, तुट्ठा साहिब सत मेव ॥ १॥ सयाने साइ असाड़ा वे, अरि हा पियारे पास जिणंदा वे आ०। अरजू हूदा तैडै अग्गै, अखदा हा इक गल्ल ।
सुख दैदा है सभनि कु चोखीच तुसाड़ी चल्ल । स०२।
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