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प्रस्ताविक विविध संग्रह।
सञ्जया-सर्वगुरू प्रक्षर देवाधिदेवस्तुतिः । साई तेरी सेवा सच्ची, दूजी काया मायकची, साता दाता माता भ्राता, तु ही दूजा दमा है। मोटा ही ते तुही मोटा, मैं तो छोटा ही में छोटा , तेरी ओटा धोटा ज्यु मै लेट्या ही का लंभा है। तेरै पासा खासा दासा, पासा वासाहि का प्यासा , मेरी आसा वेलि फैली तु ही इछ या अंभा है । दूजा को है तेरै दावै, ज्ञानी लोका तोकु गावैं , राते प्रातें धर्म ध्यावै तेरा ही ओठभा है ।। १ ॥
सनैया-तेवीसा गग तरंग के सग उरग ‘सु, मतु विना बहु जंतु मारे । ताहि समै विनता सुत ताहि जु, जाति विरोध संभारि संहारें। सौ मरि के अहि होइ चतुर्भुज, ताहू के ही सिर आसन धारै । अहो अहो यों सुखी सरिता सु तो, पानी के संग ही पार उताएँ ।१।
यति वर्णन-सौया केइ तौ समस्त वस्तु चातुरी विचार सार,
चैंन भी दुरस्त वर्दै अँन सरस्वती है। केइ तो प्रशस्त काव्य भापा गुण चुस्त करें,
और कवि अस्त होत एतौ दिव्य दुती है।