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प्रस्ताविक विविध संग्रह मेगल लहै मलीदा मण मण, कीडी उदर भरै ताइ कण कण । जितरौ वरौ जियरें जण जण, पूरे तितो ईस आपण पण ||२|| चूण दियें सहु ने विधि चंगी, हसती गज रंज हीनंगी। अति अदोह धरें मत अंगी, साहिब आस पूरै सरवगी ॥ ३ ॥ ध्रविजै सदा चूरमे धिधंगर, चीटी चख इक चेण लहै चर। धर्मसीह मन चित मता धर, पूरण आस सहु परमेसर ।। ४ ।।
सूर्य स्तुति • हुदें लोक जिण रें उदै,
मुदै सहु काम? पूजनीका सिरे देव पूजौ । साचरी बात सहु साभलौ सेवका,
देव को सूर सम नहीं दूजी ॥ १ ॥ सहस किरणा धरै हर अंधकार सही,
नमै प्रहसमै तिया कष्ट नावै । प्रगट परताप परता घणा पूरती,
अवर कुण अमर रवि गमर आवै ॥ २ ॥ पडि रहै रात रा पखिया पथिया,
हुवै दरसण स को राह हीं । सोम चढे सुरा सुरा असुरा शिहर,
मिहर री मिहर सुर कवण मीढ़ें ।। ३ ।। तपे जग ऊपरा जपै सहु को तरणि, . .
सुभा अशुभा करम धरम साखी । रूड़ा ग्रह हुवइ सहु रू. ग्रह राजवी,
रूडा रजवट प्रगट रीति राखी ॥ ४ ॥