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धर्मवद्धन ग्रन्थावली
( १० )
राग-आशा आतम तेरा अजब तमासा । खलक सुं खेलं बणावे खोटा,
खिण तोला पुनि खिण में मासा आ० परणी अपनी तजि यारी,
और सु अधिकी आसा । पद्मनी छोर संखनी परचे,
एक तो दुःख अरु दूजा हासा |आ० दीपक बुझाइ अधेरे दोडे,
___ फंद विचे पग फासा । आ० । परच्या धर्म-शील सु पाव.
अविचल सुख लील विलासा ।।आ०) ( ११ )
राग-प्रसा कबहु मे धर्म को ध्यान न कीनो। आर्त रौद्र विचार अहोनिश,
दुर्गति घर करिव थर दीनो । क०।१।। - दीप ज्यु और न पथ बतायो,
आप ही लागि रह्यो तमसीनी । मेरे तन धन कहि सुख मान्यो,
। मणि परखे पिण अतर मीनौ । क०१२।