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भूमिका
राजस्थान की साहित्य-सम्पत्ति की अभिवृद्धि एवं सुरक्षा में जैन विद्वानों का योग सदैव स्मरणीय रहेगा। जैनविद्वानों का उद्देश्य एकमात्र जनसाधारण में सद्धर्म का प्रचार करना एव ज्ञान की ज्योति की प्रकाशमान रखना रहा है। न उनको राजा-महाराजाओ का गुणानुवाद करना था, न हिंसामय युद्ध के लिए योद्धाओ को उत्तेजित करना था और न शृगार रस से पूर्ण रचनाओं द्वारा जनसमाज में कामोत्तेजना फैलाना था। उनका जीवन सदा से निवृत्ति-प्रधान रहता आया है। अतः सद्धर्म-प्रचार के साथ ही साहित्य का उत्पादन एवं उन्नयन करना उनके जीवन का अग बना हुआ दृष्टिगोचर होता है।
जैन विद्वानो ने प्रचुर साहित्य-सामग्री का निर्माण करने के साथ ही अतिमात्रा में ग्रंथो का संरक्षण भी किया है। इस कार्य मे उन्होने जैन-अजैन का विचार नहीं किया। जैन भंडारो में सभी प्रकार के महत्वपूर्ण ग्रन्थो की प्रतिया सुरक्षित की जाती रहीं है और उनके अपने लिखे हुए ग्रन्थ भी केवल जैन-धर्म विषयक ही नहीं है। उन्होंने सभी विषयो के ग्रन्थो से अपने भंडारों को परिपूर्ण करने के साथ ही स्वयं भी विविध ज्ञान