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दृष्टान्त छतीसी मोटा ही ध्रम काम मै, अधिकौ करें अदेख । दसारण री रिधि देख नै, शक्र सज्यो सुविसेष ।। २१ ॥ मोटा रे पिण कष्ट मे, जतन नेह सहु जाय । रात रमणी रान मै, नाखि गयौ नलराय ॥ २२ ॥ राज लण माहे रहै, वडा तणी मति वक्र । भरत मारण भ्रात ने, चपल चलायौ चक्र ।। २३ ॥ दान अदान दुहूं दिसी, अधिक भाव री ओर । नवल-सेठ ने फल निवल, जीरण नै फल जोर ।। २४ ।। धरमी जे धरमैं धरे, निसचौ न त नेट । चद्रवतसक ना चल्यो, थिर दिवालगि थेट ।। २५ ।। दिढता धरमै देखिने, भलौ करै सुर भाव । हित जयू देवी हण्यौ, प्रभवा तणौ प्रभाव ॥ २६ ॥ प्रापति हो3 पुण्यरी, वखत खुलै तिण वेल । सगम पायस सग मे, मुनिवर संगम मेल ॥ २७ ॥ दान सराहै देवता, चेला दीध विशेष । मूलदेव नै राजपद, देवै दीधो देखि ॥ २८ ॥ पापी न दुख पाडिजै, तो इ पाप न तजत । 'कालकसूरे कूप मैं, मन सौ मारे जंत ॥ २६ ॥
आप कष्ट अंग आगमै, पडित टालै पाप । सुलस दया पाली सही, पग पोता रो काप ॥ ३० ॥ मुनीसरा सिरि मोहरा, ताजा वाजें तूर । अगज मृति आख्या भरी, श्री शय्यभवसूरि ॥ ३१ ॥
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