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* चौबीम तीर्थक्कर पुगण *
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करते थे, हाथियोंके बच्चे बड़े मृगराजोंकी अयालों-गर्दनके घालोंको नोचते थे। सच है-विशुद्ध आत्माका असर प्राणियों पर ही क्यों अचेतन वस्तुओं पर भी पड़ सकता है।
एक दिन कच्छ और महाकच्छ राजाओं के लड़के नमि और विनमि भगवान्के चरण कमलों के पास आकर उनसे प्रार्थना करने लगे कि 'हे त्रिभुवन नायक ! आप अपने समस्त पुत्रों तथा इनर राजकुमारों को राज्य देकर सुखी कर आये पर हम दोनों को आपने कुछ भी नहीं दिया। भगवन् ? आप तीनों लोकों के अधीश्वर हैं, समर्थ हैं, दयालु हैं, इसलिये राज्य देकर हमको सुग्वी कीजिएगा' भगवान आत्म ध्यान में लीन हो रहे थे इसलिये यद्यपि नमि विनमिको उनको ओरसे कुछ भी उत्तर नहीं मिला तथापि वे अपनी प्रार्थना जारी ही किये गये। इस घटनासे एक धरणेन्द्रका आसन कंपा जिससे वह भगवानके ध्यानमें कुछ बाधा समझकर शीघ्र ही उनके पास आया। आकर जब वह देखता है कि दोनों ओर खड़े हुये नमि विनमि भगवानसे राज्यकी याचना कर रहे हैं तव धरणेन्द्रने अपना वेप बदलकर दोनों राजकुमारोंसे कहा कि आप लोग राजा भरतसे राज्यकी याचना कीजियेगा जो आपकी अभिलापाओंको पूर्ण करने में समर्थ हैं । इनके पास क्या रक्खा है जिसे देकर ये आपकी राज्य लिप्साक पूर्ण करें। आप लोग राजकुमार इतना भी नहीं समझ सके कि जिसके पास होता है वही किसीको कुछ दे सकता है ?” धरणेन्द्रकी बातें सुनकर उन दोनोंने कहा कि महाशय ! आप बड़े बुद्धिमान मालूम होते हैं, बोलनेमें आप बहुत ही चतुर प्रतीत होते हो, आपका वेष भी विश्वासनीय है पर मेरी समझमें नहीं आता कि आप विना पंछे ही हम लोगोंके वीचमें क्यों बोलने लगे ? तीनों लोकोंके एक मात्र अधीश्वर वृषभदेवकी चरण छायाको छोड़कर भरतसे राज्यकी याचना करूं? जो वेचारा खुद जरा सी जमीनका राजा है । कहिये महाशय ? जो कमण्डलु महासागरके जलसे नहीं भरा वह क्या गोष्पदके जलसे भर जावेगा ? क्या अनोखा उपदेश है आपका ?" राजकुमारोंकी उक्ति प्रत्युक्तिसे प्रसन्न होकर धरणेन्द्रने अपना कृत्रिम वेष छोड़ दिया और प्रकृति वेषमें प्रकट होकर उनसे-नमि विनमिसे कहा। "राजपुत्रो!
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