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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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चौदह महा नदियां बहा करती हैं। विदेह क्षेत्रके ठीक बीचमें एक लाख योजन ऊंचा सुवर्णमय मेरु पर्वत है । वह पर्वत अपनी उन्नत चूलिकासे स्वर्गके विमानोंको छूना चाहता है। नंदन सौमनस भाद्रशाल और पाण्डुक बनसे उसकी अपूर्व शोभा बढ़ रही है। जिनेन्द्र भगवानके जन्माभिषेकके सुरमित सलिल से उस पर्वतका प्रत्येक रजकण पवित्र है। सूर्य चन्द्रमा आदि समस्त ज्योतिषी देव उसकी प्रदक्षिणा देते रहते हैं।
उसी विदेह क्षेत्रमें मेरुपर्वतसे पश्चिमकी ओर एक वांधिल देश है। वह देश खूब हरा-भरा है-जहां पर रहनेवाले लोग किसी भी बातसे दुखी नहीं हैं। जहांपर धान्यके खेतोंकी रक्षा करनेवाली बालिकाओंके सुन्दर संगीत सुनकर हरिण चित्र लिखितसे -निश्चल हो जाते हैं। जहांके मनोहर बगीचों में रसाल आदि वृक्षोंकी डालियोंपर गैठे हुए कोयल, कीर, क्रौच आदि पक्षी तरह तरहके शब्द करते हैं। उस वांधिल देशमें एक विजयाध पर्वत है जो अपनी धवल कान्तिसे ऐसा मालूम होता है मानो चांदीसे बना हुआ हो। उस पर्वत पर अनेक सुन्दर उद्यान शोभायमान हैं। उद्यानोंके लतागृहों में देव देवांगनायें विद्याधर और विद्याधरिये अनेक तरहकी क्रीड़ा किया करती हैं। उसकी शिखरें चन्द्रकान्त मणियोंसे खचित हैं इसलिये रातके समय चन्द्रमा की किरणोंका सम्पर्क होने पर उनसे सुन्दर निझर झरने लगते हैं। उस पर्वत की तराईमें आमके ऊचे ऊंचे पेड़ लगे हैं। हवाके हलके झोंके लगनेसे उनसे पके हुए फल टूट टूटकर नीचे गिर जाते हैं और उनका मधुर रस सब
ओर फैल जाता है। उस पर्वतकी उत्तर श्रेणीमें "अलका" नामकी सुन्दर नगरी है। वह अलका नगरी अगाध जलसे भरी हुई परिखासे शोभायमान है। अनेक तरहके रत्नोंसे जड़ा हुआ वहांका प्रकार कोट इतना ऊंचा है कि रातके समय उसकी उन्नत शिखरों पर लगे हुए तारा गण मणिमय दीपकोंकी तरह मालूम होते हैं। वहाँके ऊचे ऊंचे मकान चूनेसे पुते हुए हैं इसलिये वे शरद ऋतुके बादलोंके समान मालूम होते हैं। उन मकानोंकी शिखरोमें अनेक तरहके रत्न लगे हुए हैं जो बरसातके बिना ही मेघ रहित आकाशमें इन्द्र धनुषकी छटा छिटकाते रहते हैं। वहां गगन चुम्बी जिन मन्दिरोंमें नाना