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* चौबीस तीर्थक्कर पुराण
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तरह यहांपर भी ग्राम शहर आदिका विभाग कर अलि, मपी, कृपी, शिल्प, वाणिज्य और विद्या इन छह कार्योकी प्रवृति करनी चाहिये । ऐसा करने पर ही लोग सुखसे आजीविका कर सकेंगे ऐसा निश्चयकर उन्हों ने लोगों को आश्वासन दिया और इच्छानुसार समस्त व्यवस्था करने के लिये इन्द्र का स्मरण किया। उसी समय इन्द्र समस्त देवों के साथ अयोध्यापुरी आया और वृषभेश्वरके चरण कमलों में प्रणाम कर आज्ञाकी प्रतीक्षा करने लगा। भगवान ने अपने समस्त विचार इन्द्र के सामने प्रगट किये । इन्द्रने हर्पित हो मस्तक झुका कर उनके विचारों का समर्थन किग और स्वयं देव परिवारके साथ सृष्टिकी रचना करनेके लिये तत्पर हो गया।
सबसे पहले उसने अयोध्यापुरोमें चारों दिशाओं में बड़े-बड़े सुन्दर जिनमन्दिरोंकी रचना की फिर काशी-कौशल कलिंग-कर हाटक अंग-बंग-मगधचोल-केरल-मालव-महाराष्ट्र सोरठ-आन्ध्र-तुमक-कररसेन विदर्भ आदि देशोंका विभाग किया। उन देशोंमें नदी-नहर-तालाव वन-उपवन आदि लोकोपयोगी सामग्रीका निर्माण किया। फिर उन देशोंके मध्यमें परिखा कोट बगीचा आदिसे शोभायमान गांव पुर खेट कर्वट आदिकी रचना की। उस समय पुर अर्थात् नगरोंका विभाग करनेवाले इन्द्रका पुरन्दर नाम सार्थक हो गया था। वृषभेश्वरकी आज्ञा पाकर देवेन्द्रले उन नगरों में प्रजाको ठहराया। प्रजा जन भी रहने के लिए ऊंचे ऊंचे मान र अत्यन्त प्रान्न नुए। इन्द्र अपना कर्तव्य पूरा कर समस्त देवोंके साथ स्वर्गको चला गया। किसी दिन मौका पाकर वृषभ देवने प्रजाके.लोगों क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्णोकी कल्पना कर उन्हें उनके योग्य आजीविकाके उपाय तलाये उन्होंने क्षत्रियों के लिए धनुष वांण तलशर आदि शस्त्रीका चलाना लिखलाकर दीन हीन जनोंकी रक्षा करनेका कार्य सौंपा। वैश्योके लिये देश विदेशों में धूपकर तरह तरहके व्यापार करना सिखलाए और शूद्रों के लिए दूसरोंकी सेवा शुश्रूषाका काम सौंपा था। उस समय भगवानका आदेश लोगों ने मस्तक झुकाकर स्वीकार किया था जिससे सब ओर सुख शान्ति नजर आने लगी थी।
वृषभेश्वरने सृष्टिकी सुव्यवस्था की थी इसलिए लोग उन्हें स्रष्टा-ब्रह्मा
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