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* चौबीस तीयकरपुराण -
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साधु स्वभावी विश्वनन्दीके साथ कपट किया है । सच पूछो तो यह राज्य भी उसी का है। सिर्फ स्नेहके कारण ही बड़े भाई मुझे राजा घना गये हैं। अब जिस किसी भी तरह मुझे इस पापका प्रायश्चित करना चाहिये । ऐसा सोचकर उसने भी विशाखनन्दीको राज्य देकर जिन दीक्षा ले ली। यह हम पहले लिख आये हैं कि विशाखनन्दी बुद्धिमान नहीं था इसलिये वह राज्यसत्ता पाकर मदोन्मत्त हो गया । कई तरहके दुराचार करने लगा। जिससे प्रजाके लोगोंने उसे राज्य गद्दीसे च्युतकर देशसे निकाल दिया। विशाखनन्दीने राज्यसे च्युत होकर आजीविकाके लिये किसी राजाके यहां नोकरी कर ली। किसी समय वह राजाके कार्यसे मथुरा नगरीमें आया था और वहां एक वेश्याके घरकी छत्तपर बैठा हुआ था। ___मुनिराज विश्वनन्दी भी कठिन तपस्याओंसे अपने शरीरको सुखाते हुए उस समय मथुरा नगरीमें पहुंचे । और आहारकी इच्छासे मथुरा नगरीकी गलियोंमें घूमते हुए वहांसे निकले जहांपर वेश्याके मकानकी छतपर विशाखनन्दी बैठा हुआ था । असाताका उदय किसीको नहीं छोड़ता । "मुनिराज विश्वनन्दीको उस गलीमें एक नव प्रसूता गायने धक्का देकर जमीनपर गिरा दिया । उन्हें जमीनपर पड़ा हुआ देखकर विशाखनन्दीने हंसते हुए कहा कि कलाईकी चोटसे पत्थरके खम्भेको गिरा देनेवाला तुम्हारा वह बल आज कहां गया ? ...."उसके बचन सुनकर विश्वनन्दीको भी कुछ क्रोध आ गया उन्होंने लड़खड़ाती हुई आवाजमें कहा कि-'तुझे इस हंसीका फल अवश्य मिलेगा।' आहार लेकर मुनिराज वनकी ओर चले गये। वहां उन्होंने आयुके अन्तमें निदान बांधकर सन्यास पूर्वक शरीर छोड़ा जिससे वे महाशुक्र नामके स्वर्गमें देव हुए । मुनिराज विशाखभूति आयुके अन्तमें समता भावोंसे मरकर वहां पर देव हुए। वहां उन दोनों में बहुत ही स्नेहथा।
सोलह सागरतक स्वर्गोके सुख भोगनेके बाद वहांसे च्युत होकर विशाखभूतिका जीव जम्बूद्वीप-भातक्षेत्रमें सुरम्य देशके पोदनपुर नगरके स्वामी राजा प्रजापतिकी जयावती रानीके विजय नामका पुत्र हुआ और विश्वनन्दीका जीव उसी राजाकी दूसरी रानी मृगावतीके त्रिपृष्ठ नामका पुत्र हुआ।