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* चौबीस तोथफर पुराण *
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उसके प्रारम्भमें मनुष्य उत्तर कुरुके मनुष्योंके समान होते थे। वहांपर जीवों की आयु तीन पल्यकी होती है. शरीरकी ऊंचाई छह हजार धनुषकी होती है वहांके लोगोंका रंग सोनेसा चमकीला होता है और वे तीन तीन दिन बाद थोड़ा सा आहार लेते हैं। फिर क्रम क्रमसे हानिपर दूसरा सषमां काल आता है जिसका प्रमाण तीन कोड़ा कोड़ी सागर है। उसके प्रारम्भमें मनुष्य हरिवर्ष क्षेत्रके मनुष्योंकी भांति होते हैं उनकी आयु दो पल्यकी और शरीरकी ऊंचाई चार हजार धनुषकी होती है। वे दो दिन बाद थोड़ा सा आहार लेते हैं उनका शरीर शंखके समान श्वेत वर्णका होता है। फिर क्रमसे हानि होनेपर तीसरा सुषम दुषमा काल आता है जिसका प्रमाण दों कोड़ा कोड़ी सागर है उसके प्रारम्भमें मनुष्य हैमवतक क्षेत्रके मनुष्योंकी भांति होते हैं घे एक पल्यतक जीवित रहते हैं उनका शरीर दो हजार धनुष उंचा होता है वे एक दिन बाद थोड़ा आहार लेते हैं और उनके शरीरका रंग नील कमलके समान नीला होता है । फिर क्रमसे हानि होनेपर चौथा दु:षम सुषमा काल आता है जिस का प्रमाण व्यालीस हजार वर्षे न्यून एक कोड़ा कोड़ी सागर है। उसके प्रारम्भ कालमें मनुष्य विदेह क्षेत्रके मनुष्योंके सदृश होते हैं । उनके शरीरकी ऊंचाई पाँच सौ धनुषकी और आयु एक करोड़ वर्पकी होती है। वे दिनमें एक-दो बार आहार करते हैं । फिर क्रमसे हानि होनेपर पांचवां दुषमा काल आता है जिसका प्रमाण इक्कीस हजार वर्षका है इसके प्रारम्भमें मनुष्योंकी ऊंचाई पहलेसे बहुत कम हो जाती है यहाँतक कि साढ़े तीन हाथ ही रह जाती है आयु भी बहुत कम हो जाती है । उस समयके लोग दिनमें कई बार खाने लगते थे फिर क्रमसे परिवर्तन होनेपर दुःषम दुषमा नामका छठवां काल आता है जिसका प्रमाण इक्कीस हजार वर्षका है। छठवें कालमें लोगोंकी अवगाहना शरीरकी ऊंचाई एक हाथकी रह जाती है आयु विलकुल थोड़ी रह जाती है
और शरीर भी कुरुप होने लगते हैं। इसो तरह उत्सर्पिणोके भी छह भेद होते हैं और उनका प्रमाण भी दश कोड़ा कोड़ी सागरका होता है परन्तु इनका क्रम अवसर्पिणीके क्रमसे विपरीत होता है। जब यहां अवसर्पिणीका क्रम पूरा हो चुकेगा तब उत्सर्पिणीका संचार होगा।