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-चौबीस तीर्थङ्कर पुराण
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भगवान पार्श्वनाथ
छप्पय जन्म जलधि जलयान, जान जनहंस मानसर । सर्व इन्द्र मिल आन, आन जिस धरें सीसपर ॥ पर उपकारी बान, बान उत्थप्य कुनय गण । गण सरोज बनभान, भान मम मोह तिमिर धन ॥ धन वर्ण देह दुख दाह धर, हर्षत हेत मयूर मन । मन मत मतंग हरिपास जिन, जिन विसरहु छिन जगत जन॥
-भूधरदास [१] पूर्वभव वर्णन जम्बू द्वीपके भरत क्षेत्रमें एक सुरम्य नामका रमणीय देश है और उसमें पोदनपुर नगर है। उस नगरमें किसी समय अरविन्द नामका राजा राज्य करता था। अरविन्द बहुत ही गुणवान, न्यायवान् और प्रजावत्सल राजा था । उसी नगरमें वेद शास्त्रोंको जाननेवाला विश्वभूति नामका ब्राह्मण रहता था। वह अपनी अनुन्धरी नामकी ब्राह्मणीसे बहुत प्यार करता था। उन दोनोंके कमठ और मरुभूति नामके दो पुत्र थे। दोनोंमें कमठ बड़ा था और मरुभूति छोटा । मरुभूति था तो छोटा पर वह अपने गुणोंसे सषको प्यारा लगता था। कमठ विशेष विद्वान न होनेके साथ साथ सदाचारी भी नहीं था। वह अपने दुर्व्यवहारसे घरके लोगोंको बहुत कुछ तंग किया करता था। यदि आचार्य गुणभद्रके शब्दोंमें कहा जावे तो कमठका निर्माण विषसे भरा हुआ था और मरुभूतिकी रचना अमृत से। कमठकी स्त्रीका नाम वरुणा था और मरुभूतिकी स्त्रीका नाम बसुन्धरी । कमठ और मरुभूति दोनों राजा अरविन्दके मन्त्री थे। इसलिये इन्हें किसी प्रकारका आर्थिक संकट नहीं उठाना पड़ता था और नगर में इनकी धाक भी खूब जमी हुई थी। समय बीतने पर ब्राह्मण और ब्राह्मणकी मृत्यु होगई। जिससे उसकी बंधी हुई गृहस्थी एक चालसे छिन्न भिन्न हो गई।
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