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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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पूर्वभव परिचय
घनाक्षरी छन्द आदि जै वर्मा दुजै, महावल भूप तीजै,
स्वर्ग ईशान ललितांग देव भयो हैं। चौथे बज जंघ राय पांचवें युगल देह,
सम्यक हो दृजे देव लोक फिर गयो है ।। सातवें सुविधि देव आठवें अच्युत इन्द्र
नोमें भोनरिन्द्र वज्रनाभि नाम पायो है । दशमें अहमिन्द्र जान ग्यारमें ऋपभमान नाभिवंश भूधरके माथे जन्म लियो है।
-भूधरदास
भरतैरावतयो वृद्रिहासौ पटसमयाभ्या मुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम् ।
भगवान उमास्वामीने कहा है कि भरत और ऐरावत क्षेत्रमें उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी कालके द्वारा क्रमसे वृद्धि और हानि होती रहती है-जिस प्रकार शुक्ल पक्षमें चन्द्रमाकी कलाएं दिन प्रतिदिन पढ़ती जाती हैं उसी प्रकार उत्सर्पिणी कालमें लोगोंका बलाविद्या आयु आदि वस्तुएं बढ़ती जाती हैं। भरत और ऐरावत क्षेत्रमें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्षकी नाई उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालका परिवर्तन होता रहता है। उनके छह छह भेद हैं। एक अति दुःषमा २ दुषमा ३ दुषम सुषमा ४ सुषम दुषमा ५ सुषमा ६ सुषमा सुषमा । यह क्रम उत्सर्पिणीका है । अवसर्पिणीका क्रम इससे उल्टा होता है । ये दोनों मिलकर कल्पकाल कहलाते हैं जिसका प्रमाण वीस कोड़ा कोड़ी सागर है। __ अभी इस जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें अवर्सपिणी कालका संचार हो रहा है उसके सुषप सुषमा नामक पहले भेदका समय चार कोड़ा कोड़ी सागर है।