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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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भगवान विमलनाथ स्तिमिततम समाधि ध्वस्त निःशेष दोषं
क्रम गम करणान्तर्धान हीनाव बोधम् ।। विमल ममल मूर्ति कीर्तभाजाभाजां
नमत विमलताप्तौ भक्तिभारेण भव्याः ॥ -आचार्य गुणभद्र 'अत्यन्त निश्चल समाधिके द्वारा जिन्होंने समस्त दोषोंको नष्ट कर दिया है ऐसे तथा क्रम, साधन और विनाशसे रहित है ज्ञान जिन्होंका ऐसे निर्मल मूर्ति वाले और देवोंकी कीर्तिको प्राप्त होनेवाले भगवान विमलनाथको हे भव्य प्राणियो ! निर्मलताकी प्राप्तिके लिये भक्तिपूर्वक नमस्कार करो।"
१] पूर्वभव वर्णन पश्चिम धातकीखण्ड द्वीपमें मेरु पर्वतसे पश्चिमकी ओर सीतानदीके दाहिने तटपर एक रम्य कावती देश है किसी समय वहां पद्मसेन राजा राज्य करते थे। उनकी शासन प्रणाली बड़ी ही विचित्र थी। उनके राज्यमें न कोई वर्ण-व्यवस्थाका उल्लङ्घन करता था न कोई झूठ बोलता था न कोई किसीको व्यर्थ ही सताता था, न कोई चोरी करता था और न कोई पर स्त्रियोंका अपहरण करता था। वहांकी प्रजा धर्म, अर्थ और कामका समान रूपसे पालन करती थी। एक दिन महाराज पद्मसेन राज सभामें बैठे हुए थे उसी समय बननामके मालीने आकर अनेक फल फूल भेंट करते हुए कहा कि महाराज ! प्रातिकर बनमें सर्वगुप्त केवलीका शुभागमन हुआ है। राजा पद्मसेन केवलीका आगमन सुनकर अत्यन्त हर्षित हुए । उनके समस्त शरीरमें मारे हर्षके रोमांच निकल आये और आंखोंसे हर्षके आंसू बहने लगे। उसी समय उन्होंने सिंहासनसे उठकर जिस ओर परमेश्वर सर्वगुप्त विराजमान थे उस ओर सात पैंड चलकर परोक्ष नमस्कार किया । फिर समस्त परिवार और नगरके प्रतिष्ठित लोगोंके साथ साथ उनकी वन्दनाके लिये प्रीतिङ्कर नामके बनमें गये । केवली सर्वगुप्त के प्रभावसे उस बनकी अपूर्व ही शोभा हो गई थी। उसमें एक साथ छहों
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