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________________ * चौबीस तीर्थकर पुराण * - %3 एक हजार राजाओंके साथ दीक्षित हो गये। आपके दीक्षा लेते ही मनः पर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था। __ भगवान शीतलनाथ दो दिनके उपवासके बाद आहार लेनेकी इच्छासे अरिष्ट नामक नगरमें गये। वहां राजा पुनर्वसुने बड़ी प्रसन्नतासे नवधा भक्ति पूर्वक उन्हें आहार दिया। पात्र दानके प्रभावसे राजा पुनर्वसुके घर पर देवोंने पञ्चाश्चर्य प्रकट किये। इस तरह तपश्चरण करते हुए उन्होंने अल्पज्ञ अवस्थामें तीन वर्ष बिताये। फिर पौष कृष्ण चतुर्दशीके दिन शामके समय पूर्वापाढ़ नक्षत्रमें उन्हें दिव्य आलोक केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। उसी समय देवोंने आकर ज्ञान कल्याणका उत्सव मनाया। इन्द्रकी आज्ञासे कुवेरने समवसरणकी रचना की उसके मध्यमें स्थित होकर आपने सार्व धर्मका उपदेश देकर उपस्थित जनताको सन्तुष्ट किया। इन्द्रको प्रार्थनासे उन्होंने अनेक देशों में बिहार कर संसार और मोक्षका स्वरूप बतलाया, दार्शिनिक गुत्थियां सुलझाई और सबको हितका मार्ग बतलाया था। उनके उपदेशके प्रभावसे लोगोंके हृदयोंसे धर्म कर्मकी शिथिलता उस तरह दूर हो गई थी जिस तरहकी सूर्यके प्रकाशसे अन्धकार दूर हो जाता है। उनके समवसरणमें ऋद्धियों और मनः पर्यय ज्ञानके धारक इक्यासी गणधर थे । चौदह सौ द्वादशाङ्गके जानकार थे। उनसठ हजार दो सौ शिक्षक थे. सात हजार दो सौ अवधिज्ञानी थे, सात हजार केवल ज्ञानी थे, बारह हजार विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, सात हजार पांच सौ मनः पर्यय ज्ञानी थे, और पांच हजार सात सौ वादो मुनि थे। इस तरह सब मिलकर एक लाख मुनि थे धारणा आदि तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकायें थीं, दो लाख श्रावक थे, चार लाख श्राविकायें थी, असंख्यात देव देवियां और संख्यात तिर्यञ्चथे । जय भगवान् शीतलनाथकी दिव्यध्वनि खिरती थी तब समस्त सभा चित्र लिखित सी नीरव और स्तब्ध हो जाती थी। वे आयुके अन्त समय में सम्मेद शिखरपर पहुंचे, वहां एक महीनेका योग निरोध कर हजार मुनियोंके साथ प्रतिमा योगसे विराजमान हो गये और आश्विन शुक्ला अष्टमीके दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में शामके समय अघातिया कर्मों का नाश कर स्वतन्त्र्य सदन
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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