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• चौबीस तोबार, पुसण*
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का चिन्तवन किया जिससे उसे तीर्थकर नामक पुण्य प्रकृतिका बन्ध हो गया अन्तमें वह समाधि पूर्वक शरीर छोड़कर चौदहवें अनन्त स्वर्गमें इन्द्र हुआ। वहां उनकी आयु बीस सागरकी थी, तीन हाथका शरीर था, शुक्ल लेश्या थी। । वह पीस पक्ष दश माह बाद श्वांस लेता था, बीस हजार वर्ष बाद मानसिक
आहार लेता था, उसके मानसिक प्रवीचार था और पांचवें नरक तककी बात बतलाने वाला अवधिज्ञान था। उसके वैक्रियिक शरीर था और उस पर भी अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व और वशित्व ये आठ ऋद्धियां थीं। वह अनेक क्षेत्रोंमें घूम-घूमकर प्रकृतिकी सुन्दरताका निरीक्षण करता था। वह कभी उदयाचलकी शिखरपर बैठकर सूर्योदयकी सुन्दर शोभा देखता, कभी अस्ताचलकी चोटियोंपर बैठकर सूर्यास्तकी सुषमा देखता कभी मेरु पर्वतपर पहुंचकर नन्दन बनमें क्रीड़ा करता, कभी समुद्रोंके तटपर बैठकर उसकी लहरोंका उत्तालनर्तन देखता और कभी हरी भरी अटवियोंमें घूमकर हर्षसे नाचते हुए मयूरोका ताण्डव देखकर खुसी होता था। यह इन्द्र ही आगे चलकर पुष्पदन्त तीर्थकर होगा।
[२] वर्तमान परिचय . जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें एक काकन्दी नामकी महा मनोहर नगरी थी। | उसमें इक्ष्वाकु वंशीय राजा सुग्रीव राज्य करते थे। उनकी स्त्रीका नाम जय
रामा था । जब उस इन्द्रकी आयु वहांपर सिर्फ छह माहकी वाकी रह गई तभी से देवोंने सुग्रीव महाराजके घर रत्नोंकी वर्षा करनी शुरू कर दी। अनेक देव 'कुमारियां आ आकर महारानी जयरामाकी सेवा करने लगीं। फाल्गुन कृष्ण नवमीके दिन मूल नक्षत्र में पिछली रातके समय रानी जयरामाने सोलह स्वप्न देखे । उसी सयय इन्द्रने स्वर्ग वसुन्धरासे मोह छोड़कर उसके गर्भ में प्रवेश 'किया। सवेरा होते ही जब उसने पति देवसे स्वप्नोंका फल पूछा । तब उन्होंने कहा कि आज तुम्हारे गर्भ में तीर्थकर पुत्रने अवतार लिया है। वह महा पुण्य शाली पुरुष है । देखो न ? उसके गर्भमें आनेके छह माह पहलेसे प्रतिदिन करोड़ों रत्न वरस रहे हैं और देवकुमारियां तुम्हारी सेवा कर रही हैं। प्राण
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