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* चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
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पहिनकर हाथोंमे पूजाकी सामग्री लिये हुए राजद्वार पर जमा हो गये तब सब को साथ लेकर वे उस उद्यानमें गये जहां मुनिराज श्रीधर विराजमान थे। राजाने दूर से ही राज्य चिन्ह छोड़कर विनीत भावसे यनमें प्रनेश किया और मुनिराजके पास पहुंचकर उन्हें अष्टाङ्ग नमस्कार किया। मुनिराजने 'धर्म वृद्धिरस्तु, कहकर सबके नमस्कार ग्रहण किये। ___जब जय जयका कोलाहल शान्त हो गया तब राजा पद्मनाभने मुनिराज से अनेक दर्शन विषयक प्रश्न किये। मुनिराजके मुखसे समुचित उत्तर पाकर वे बहुत ही हर्षित हुए । बादमें उनने मुनिराजसे अपने पूर्वभव पूछे सो मुनिराजने उनके अनेक पूर्वभवोंका वर्णन किया। यनसे लौटकर पद्मनाभ राजभवनमें वापिस आ गये और वहां कुछ दिनोंतक राज्य शासन करते रहे। ___ अन्तमें उनका चित्त किसी कारण वश विषय वासनाओंसे विरक्त हो गया जिससे उन्होंने सुवर्ण नाभि पुत्रको राज्य देकर किन्हीं महामुनिके पास | जिन दीक्षा ले ली । उनके साथमें और भी अनेक राजाओंने दीक्षा ली थी। मुनिराज पद्मनाभने गुरुके पास रहकर खूब अध्ययन किया जिससे उन्हें ग्यारह अङ्गों तकका ज्ञान हो गया। उसी समय उन्होंने दर्शन विशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओंका चिन्तवन कर तीर्थङ्कर नामक पुण्य प्रकृतिका बन्ध कर लिया और आयुके अन्तमें सन्यास पूर्वक शरीर छोड़कर जयन्त नामक अनुत्तर विमानमें अहमिन्द्र पद प्राप्त किया। ___वहां उनकी आयु तेतीस सागरकी थी, एक हाथ ऊंचा सफेद रङ्गका शरीर था वे तेतीस हजार वर्ष बाद आहार और तेतीस पक्ष बाद श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते थे। उन्हें जन्मसे ही अवधि ज्ञान था। यह अहमिन्द्र ही आगेके भवमें अष्ठम तीर्थेश्वर भगवान् चन्द्रप्रभ होगा। गीता छन्द-श्रीवर्म भूपति पाल पुहमी, स्वर्ग पहले सुर भयो।
पुनि अजितसेन छ खण्ड नायक, इन्द्र अच्युत मैं थयो। वर पदमनाभि नरेश निर्जर, वैजयन्त विमानमें। चन्द्राभ स्वामी सातवें भव, भये पुरुष पुराणमें । -भूधरदास
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