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* चाबोस तीथकर पुराण *
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मुनिराज आकाश मार्गसे विहार कर गये। कुछ समय बाद आयु पूर्ण होनेपर बनजंघका जीव आर्य ऐशान स्वर्गके श्रीप्रभ विमानमें श्रीधर नामका देव हुआ और श्रीमती आर्याका जीव उसी स्वर्गके स्वयं प्रभ विमानमें स्वयं प्रभ नामका देव हुआ। एवं शार्दूल व्याका जीव उसी स्वर्गके चित्रांगद विमानमें चित्रांगद नामका सुअरका जीव नन्द विमानमें मणि कुण्डली नामका चानरका जीव नंद्यावर्त विमानमें मनोहर नामका और नेवलेका जीव प्रभाकर विमानमें मनोरथ नामका देव हुआ। वहां ये सब पुण्यके प्रतापसे अनेक तरहके भोग भोगते हुए सुखसे रहने लगे। किसी समय स्वयं बुद्ध मन्त्रीके जीव प्रीतिकर मुनिराजको जिनने अभी उत्तर कुरुक्षेत्रमें आर्य आर्याको सम्यग्दर्शन प्राप्त कराया था। श्रीप्रभ पर्वतपर केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। सभी देव उनकी बन्दनाके लिये गये । श्रीधर देवने भी जाकर अपने गुरु केवली भगवान प्रीतिकरको भक्ति सहित नमस्कार किया। और फिर धर्मका स्वरूप सुननेके बाद पूछा-भगवन् ? महावल भवमें जो मेरे सम्भिन्नमति, शतमती और महा. मती नामके तीन मिथ्यादृष्टि मन्त्री थे वे अब कहांपर हैं ? उन्होंने कहा कि संभिन्नमति और महामति निगोद राशिमें उत्पन्न होकर अचिन्त्य दुख भोग रहे हैं और शतमति मिथ्या ज्ञानके प्रभावसे दूसरे नरकमें कष्ट पा रहा है। 'जो जैसा कार्य करता है वैसा ही फल पाता है। ___ यह सुनकर श्रीधर देवको बहुत ही दुख हुआ। वह संभिन्नमति और महामतिके विषयमें तो कर ही क्या सकता था हां, पुरुषार्थसे शतमतिको सुधार सकता था इसलिये झटसे दूसरे नरकमें गया। वहां अवधिज्ञानसे शतमति मन्त्रीके जीवनारकीको पहिचानकर उससे कहने लगा। क्यों महाशय ! आप मुझे पहिचानते हैं ? मैं विद्याधरोंके राजा महाबलका जीव हूँ। मिथ्या ज्ञानके कारण आपको ये नरकके तीब्र दुःख प्राप्त हुए हैं । अब यदि इनसे छुट कारा चाहते हो तो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानसे अपने आपको अलंकृत करो । श्रीधरके उपदेशसे नारकी शतमतिने शीघ्र ही सम्यग्दर्शन धारण कर लिया। सम्यग्दर्शनके प्रभावसे उसका समस्त ज्ञान सम्यज्ञान हो गया। श्रीधर देव कार्यकी सफलतासे प्रसन्न चित्त होता हुआ अपने स्थानपर वापिस