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________________ * चौवीस तीर्थकर पुराण * ११६ manna - PRINTre AAAED - - LORD PLEAPO [ १ ]. पूर्वभव परिचय धातकी खण्ड द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें सीता नदीके उत्तर किनारे पर सुकच्छ देश है। उसके क्षेमपुर नगरमें किसी समय नन्दिपेण राजा राज्य करता था। वह राजा बहुत ही विद्वान एवं चतुर था। उसने अपनी चतुराई से अजेय शत्रु ओंको भी वशमें कर लिया था। उसका बाहुबल भी अपार था। वह रणक्षेत्रमें निःशङ्क होकर गरजता था कि देव, दानव, विद्याधर नरवीर जिसमें शक्ति हो वह मेरे सामने आवे। उसकी स्त्रियां अपनी रूप राशि से स्वर्गीय सुन्दरियोंको भी लज्जित करती थीं। वह उनके साथ अनेक तरहके शृङ्गार सुख भोगता हुआ अपने योवनको सफल बनाया करता था। यह सब होते हुए भी वह धर्म कार्यो में हमेशा सुदृढ़ चित्त रहता था, इसलिये उसके कोई भी कार्य ऐसे नहीं होते थे जो धार्मिक नियमोंके विरुद्ध हों। कहनेका मतलव यह है कि वह राजा धर्म अर्थ और कामका समान रूपसे पालन करता था। राज्य करते करते जय बहुत समय निकल गया तब एक दिन उसे सहसा वैराग्य उत्पन्न हो गया जिससे उसे समस्त भोग काले भुजङ्गकी तरह मालूम होने लगे। उसने अपने विशाल राज्यको विस्तृत कारागार समझा । उसी समय उसका स्त्री-पुत्र आदिसे ममत्व छूट गया। उसने सोचा कि 'यह जीव अरहटकी घड़ीके समान हमेशा ही चारों गतियों में घूमता रहता है । जो आज देव है वह कल निर्यञ्च हो सकता है। जो आज राज्य सिंहासन पर बैठकर मनुष्योंपर शासन कर रहा है वही कल मुट्ठी भर अन्नके लिये घर घर भटक सकता है। ओह ! यह सब होते हुए भी मैने अभी तक इस संसारसे छटकारा पानेके लिये कोई सुदृढ़ कार्य नहीं किया। अब मैं शीघ्र ही मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रयत्न करूंगा” इत्यादि विचार कर उसने धनपति नामक पुत्रको राज्य सिंहासन पर बैठा दिया और स्वयं बनमें जाकर अर्हन्नन्दन मुनिराजके पास जिन दीक्षा ले ली। दीक्षित होनेके बाद उसके पास कुछ भी परिग्रह नहीं % DOORDELEASE
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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