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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
Namama
था। वे मूर्तिधारी पुण्यके समान मालूम होते थे।
जब इनकी आयुके साढ़े बारह लाख वर्षवीत गये तब महाराज स्ययंवरने इन्हें || राज्य देकर दीक्षा धारण कर ली । अभिनन्दन स्वमीने भी राज्यसिंहासन पर विराजमान होकर साढ़े छत्तीस लाख पूर्व और आठ पूर्वींग तक राज्य किया।
एक दिन मकानकी छत पर बैठकर आकाशको शोभा देख रहे थे । देखते देखते उनकी दृष्टि एक बादलों के समूह पर पड़ी। उस समय वह बादलोंकी समूह आकाशके मध्य भागमें स्थित था। उसका आकार किसी मनोहर नगरके समान था। भगवान अनिमेप दृष्टिसे उसके सौन्दर्यको देख रहे थे। पर इतनमें वायके प्रवल वेगसे वह बादलों का समूह नष्ट हो गया-. कहींका कहीं चला गया। बस, इसी घटनासे उन्हें आत्मज्ञान प्राट हो गया, जिससे उन्होंने राज्यकार्यसे मोह छोड़कर दीक्षा लेनेका दृढ़ विचार कर लिया। उसी समय लौकान्निक देवों ने भी आकर उनके विचारों का समर्थन किया, चारों निकाय के देवों ने आकर दीक्षाकल्याणकका उत्सव किया। अभिनन्दन स्वामी राज्यका भार पुत्र के लिये सौंपकर देव निर्मित ह त चित्रा' पालको पर सवार हुए । देव उस पालकीको उठाकर उप्र नामक उद्यान में ले गये। वहां उन्होंने माघ शुक्ला द्वादशीके दिन पुनर्वसु नक्षत्रके उदयमें शामके समय जगद्वन्द्य सिद्ध परमेष्ठीको नमस्कार कर दीक्षा धारण कर ली-चाह्य-आभ्यन्तर परिग्रहको छोड़ दिये और केश उखाड़ कर फेंक दिये। उनके साथमें और भी हजार राजाओं ने दीक्षा धारण की थी। उन सबसे घिरे हुए भगवान अभिनन्दन बहुत हो शोभायमान होते थे। उन्हो ने दीक्षा लेते समय वेला अर्थात् दो दिनका उपवास धारण किया था।
जब तीसरा दिन आया तब वे मध्याह्नसे कुछ समय पहले आहार लेनेके लिये अयोध्यापुरीमें गये। उस समय वे आगेकी चार हाथ जमीन देखकर चलते थे, किसीसे कुछ नहीं कहते, उनकी आकृति सौम्य थी, 'दर्शनीय थी। वे उस समय ऐसे मालूम होते थे मानों 'चचाल चित्रं किलकाञ्चनाद्रि'- मेरु पर्वत ही चल रहा हो । महाराज इन्द्रदत्तने पड़गाह कर उन्हें विधिपूर्वक भोजन दिये जिससे उनके घर देवों ने पंचाश्चर्य प्रकट किये। वहांसे लौट कर
DEDICATED
मम्म्म
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