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* चौबीम तर्थक्कर पुराण *
च्छास ग्रहण करते थे। वहां उन्हें जन्मसे ही अवधि ज्ञान प्राप्त हो गया था इसलिये वे सातवीं पृथ्वी तकको वात स्पष्ट रूपसे जान लेते थे। अब आगेके भवमें अहमिन्द्र मेघरथ भारतवर्ष में सोलहवें तीर्थकर होंगे।
[२] वर्तमान वर्णन इसी जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें एक कुरु जाहाल देश है। यह देश पास पासमें बसे हुए ग्राम और नगरोंसे बहुत ही शोभायमान है। उसमें कहीं ऊंची ऊंची पर्वत मालाएं अपनी शिखरोंसे गगनको स्पर्श करती हैं। कहीं कलरव करते हुए सुन्दर निर्भर बहते हैं। कहीं मदी नदिएं धीर प्रशान्त गति से गमन करती हैं और कहीं हरे हरे थनोंमें मृग, मयूर, आदि जानवर क्रीड़ाए किया करते हैं । यह कहनेमें अत्युक्ति न होगी कि प्रकृतिने अपने सौन्दर्यका बहुत भाग उसी देशमें खर्च किया था । ___उसमें एक हस्तिनापुर नामकी नगरी है । वह परिखा, प्राकार, कूप, सरो. वर आदिसे बहुत हो भली मालूम होती थी। उसमें उस समय गगनचुम्बी मकान बने हुए थे । जो चन्द्रमाके उदय होनेपर ऐसे मालूम होते थे मानो दूध से धोये गये हो । वहांकी प्रजा धन धान्यसे सम्पन्न थी। कोई किसी बातके लिये दुःखी नहीं थी। वहां असमय में कमी किसीकी मृत्यु नहीं होती थी। वहाँके लोग बड़े धर्मात्मा और साधु स्वभावी थे। वहां राजा विश्वसेन राज्य करते थे। वे वहुत ही शूरवीर-रणधीर थे। उन्होंने अपने पाहुबलसे समस्त भारतवर्षके राजाओं को अपना सेवक बना लिया था। उनकी मुख्य स्त्रीका नाम ऐरा था। उस समय पृथिवी तलपर ऐराके साथ सुन्दरतामें होड़ लगाने वाली स्त्री दूसरी नहीं थी। दोनों राज्य दम्पती सुखसे समय बिताते थे। ___ऊपर कहे हुए अहमिन्द्र मेघरथकी आयु जब वहां [ सर्वार्थसिद्धिमें ] सिर्फ छह माह की बाकी रह गई । तवसे राजभवन में प्रतिदिन करोड़ों रत्नोंकी वर्षा होने लगी। उसी समय अनेक शुभ शकुन हुए और इन्द्रकी आज्ञासे अनेक देवकुमारियां ऐरा रानीकी सेवाके लिये आ गई। इन सब कारणोंसे राजा विश्वसेनको निश्चय हो गया कि हमारे घरपर जगत्पूज्य तीर्थकरका जन्म
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