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* चौवीस तीथकर पुराण *
Roman
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पण्डिता चुप हो रही। श्रीमतीने कृतज्ञता भरी नजरसे उसकी ओर देखा और फिर उस नूतन चित्र पटको हृदयसे लगा लिया। ___ इधर बजूदन्त चक्रवर्तीकी राजा बज्रवाहु वगैरहले रारनामें ही भेंट हो गई। चक्रवर्ती, बहनोई वजू बाहु , बहिन बसुन्धरा और भानजे व जंघको बड़े आदर सत्कारसे अपने घर लिवा लाये। जब उन्हें घरपर रहते हुये कुछ दिन हो गये तव चक्रवर्तीने वज बाहुसे कहा कि महाशय ! आप लोगोंके आनसे मुझे जो हर्ष हुआ है उसका वर्णन करना कठिन है। यदि आप लोग मुझपर प्यार करते है तो मेरे घरमें आपके योग्य जो भी उत्तम वस्तु हो उसे स्वीकार कीजियेगा। तब बजबाहुने कहा- यद्यपि आपके प्रसादसे मेरे पास सब कुछ है-किसी वस्तुकी आकांक्षा नहीं है तथापि यदि आपकी इच्छा है तो चिरंजीव बज्रजंघके लिये आप अपनी पुत्री श्रीमतो दे दीजियेगा। चक्रवर्ती तो यह चाहते ही थे उन्होंने झटसे बहनोईकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और विवाहकी तैयारी करनेके लिये सेवकोंको आज्ञा दे दी। सेवकोंने सुन्दर विवाह मण्डप बनाया तथा पुण्डरीकिणी पुरीको ऐसा सजाया कि उसके सामने इन्द्रकी अमरावती भी लजाती थी। निदान शुभमुहूर्त में बनजंघ और श्रीमतीका विधि पूर्वक पाणिग्रहण हो गया। पाणिग्रहणके बाद बर वधू अनेक जन समूहके साथ महापून चैत्यालयको गये और वहां जिनेन्द्रदेवकी अर्चा एवं स्तवन कर राजमन्दिरको लौट आये। वहां चक्रवर्ती बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओंने बज़ जंघ ओर श्रीमतीका स्वागत किया। विवाहके बाद बज जंघने कुछ समयतक अपनी ससुरालमें ही रहकर आमोद प्रमोदसे समय व्यतीत किया था। इसी बीचमें राजा बज वाहुने अपनी अनुन्दरी नामकी पुत्रीका चक्रवर्तीके ज्येष्ठ पुत्र अमिततेजके साथ विवाह कर दिया था। जब वजू जंघ अपने घर वापिस जाने लगे तब चक्रवर्तीने हाथी, घोड़ा, सोना चांदी, मणि मुक्ता आदिका बहुमूल्य दहेज देकर उनके साथ श्रीमतीको विदा करदी। यद्यपि श्रीमती और बज जंघके विरहसे चक्रवर्तीका अन्तःपुर तथा सकल पुरवासी जन शोकसे विह्वल हो उठे थे तथापि 'जिनका संयोग होता है उनका वियोग भी अवश्य होता है' ऐसा सोचकर कुछ समय बाद शान्त हो गये थे। अनेक वन उपवनोंकी शोभा निहा.