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* चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
हे देव ! आपका शरीर शान्त है, वचन कानोंको सुख देने वाले हैं और चरित्र सबका उपकार करने वाला है इसलिये हम सब, संसार रूपी विशाल मरुस्थल में सघन छाया वाले वृक्ष स्वरूप आप सुविधिनाथ- पुष्प दन्तका आश्रय लेते हैं ।
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[१] पूर्वभव वर्णन
पुष्करार्ध द्वीपके पूर्व मेरुसे पूर्व दिशा की ओर अत्यन्त प्रसिद्ध विदेह क्षेत्र है उसमें सीता नदीके उत्तर तटपर पुष्कलावती देश है जो अनेक समृद्धिशाली ग्राम नगर आदि से भरा हुआ है । उसमें एक पुण्डरीकिणी नामकी नगरी है । उसमें किसी समय महापद्म नामका राजा राज्य करता था। वह बहुत ही बलवान था, बुद्धिमान था । उस बाहु बलके साम्हने अनेक अजेय राजाओं को भी आश्चर्य सागरमें गोते लगाने पड़ते थे । उसके राज्यमें खोजने - पर भी दरिद्र पुरुष नहीं मिलता था । वह हमेशा विद्वानोंका समुचित आदर करता था और योग्य वृत्तियां दे देकर उन्हें नई बातोंके खोजने के लिये प्रोत्सा हित किया करता था । उसने काम, क्रोध, मद, मात्सर्य, लोभ और मोह इन छह अन्तरङ्ग शत्रुओंको जीत लिया था। समस्त प्रजा उसकी आज्ञाको माला की भांति अपने मस्तकपर धारण करती थी । प्रजा उसकी भलाईके लिये सब कुछ न्यौछावर कर देती थी और वह भी प्रजाकी भलाई के लिये कोई बात उठा नहीं रखता था ।
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एक दिन बहांक मनोहर नामके बनमें महामुनि भूतहित पधारे । नगरके समस्त लोग उनकी बन्दनाके लिये गये । राजा महापद्म : भी अपने समस्त परिवार के साथ मुनिराजके दर्शनोंके लिये गया। वह वहांपर मुनिराजकी भव्य मूर्ति और प्रभावक उपदेश से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी समय राज्य सुख, स्त्री सुख आदिसे मोह छोड़ दिया और धनद, नामक पुत्रके लिये राज्य देकर दीक्षा ले ली । महामुनि भूतहितके पास रहकर उसने कठिन तप - स्याएं कीं और अध्ययन कर ग्यारह अंगोंका ज्ञान प्राप्त कर लिया । किसा समय उसने निर्मल हृदयसे दर्शन विशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं
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