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* चौबोस तीथङ्कर पुराण *
संसारके सब पदार्थों की अस्थिरताका विचारकर दीक्षा धारण करनेका दृढ़ निश्चय कर लिया और दूसरे दिन श्रीकान्त नामक बड़े पुत्रके लिये राज्य देकर श्री. प्रभ आचार्यके पास दिगम्बर दीक्षा ले ली । अन्तमें वह श्रीप्रभ नामक पर्वत पर सन्यास पूर्वक शरीर छोड़कर पहले स्वर्गके श्रीप्रभ विमान में श्रीधर नामका देव हुआ। वहां उसकी दो सागरको आयु थी, सात हाथका दिव्य वैकिfuक शरीर था, पीत लेश्या थी । वह दो हजार वर्ष बाद मानसिक आहार लेता और दो पक्ष वाद श्वासोच्छ्वास करता । उसे जन्मसे ही अवधि ज्ञान था अणिमा महिमा आदि ऋद्धियां प्राप्त थीं । वहां वह अनेक देवाङ्गनाओंके साथ इच्छानुसार क्रीड़ा करता हुआ सुखसे समय बिताने लगा ।
धातकी खण्ड द्वीपमें दक्षिणकी ओर एक इष्वाकार पर्वत है । उसके पूर्व भरत क्षेत्रके अलका नामक देशमें एक अयोध्या नामकी नगरी है । उसमें किसी समय अजितंजय नामका राजा राज्य करता था । उसकी स्त्रीका नाम अजितसेना था । एक दिन रातमें अजितसेनाने हाथी, बैल, सिंह, चन्द्रमा सूर्य, पद्म, सरोवर, शङ्ख और जलसे भरा हुआ घट ये आठ स्वप्न देखे । सवेरा होते ही उसने पतिदेव महाराज अजितंजयसे स्वप्नोंका फल पूछा । तब उन्होंने कहा - कि 'आज तुम्हारे गर्भमें किसी पुण्यात्मा जीवने अवतरण किया है । ये स्वप्न उसीके गुणोंका सुयश वर्णन करते हैं । वह हाथीके देखने से गम्भीर, बैल और सिंहके देखनेसे अत्यन्त बलवान, चन्द्रमाको देखनेसे सबको प्रसन्न करने वाला, सूर्यके देखनेसे तेजस्वी, पद्म-सरोवरके देखनेसे शंख, चक्र आदि बत्तीस लक्षणोंसे शोभित, शंखके देखनेसे चक्रवर्ती और पूर्ण घटके देखनेसे निधियोंका स्वामी होगा। स्वप्नोंका फल सुनकर रानी अजितसेनाको अपार हर्ष हुआ ।
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पाठक यह जाननेके लिये उत्सुक होंगे कि अजितसेनाके गर्भ में किस पुण्यात्माने अवतरण लिया है। उसका उत्तर यह है कि ऊपर पहले स्वर्गके श्रीप्रभ विमान में जिस श्रीधर देवका कथन कर आये हैं, वही वहांकी आयु पूर्ण कर महारानी अजितसेनाके गर्भ में आया है । गर्भ काल व्यतीत होनेपर रानीने शुभ मुहुर्तमें पुत्र रत्न पैदा किया, जो बड़ा ही पुण्यशाली था । राजा
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