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• चौबीस तोथङ्कर पुराण *
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आचार्यके पास दीक्षित हो गया। उसने आचार्यके पास रहकर खूब अध्ययन किया और कठिन तपस्याओंसे अपनी आत्माको बहुत कुछ निर्मल बना लिया। उन्हींके पासमें रहते हुए उसने दर्शन-विशुद्धि, विनय सम्पन्नता आदि सोलह भावनाओंका चिन्तवन कर तीर्थंकर नामक पुण्य प्रकृतिका वन्ध कर लिया था। जब उसकी आयु समाप्त होनेको आई तब वह समस्त वाह्य पदार्थोसे मोह हटाकर शुद्ध आत्माके ध्यानमें लीन हो गया जिससे मरकर नवमें अवेयक के 'प्रीतिकर' विमानमें ऋद्धिधारी अहमिन्द्र हुआ। वहांपर उसकी आयु इकतिस सागरकी थी, शरीर दो हाथ ऊंचा था, लेश्या-शरीरका रङ्ग सफेद था। वह इकतीस हजार वर्षे बाद मानसिक आहार लेता था और इकतीस पक्षमें एक वाह सुगन्धित श्वास ग्रहण था । उसे जन्मसे ही अवधि ज्ञान प्राप्त था जिससे वह ऊपर, विमानके ध्वजा दण्ड तक, और नीचे सातवें नरक तककी बात स्पष्ट जान लेता था। प्रवीचार-मैथुनक्रियासे रहित था। वह वहां हमेशा जिन अर्चा और तत्व चर्चा आदिमें ही समय बिताया करता था। यही अह. मिन्द्र ग्रैवेयकके सुख भोगकर भरतक्षेत्रमें पद्मप्रभ नामका तीर्थंकर होगा। ग्रैवेयकसे चयकर वह जहां उत्पन्न होगा अब वहांका हाल सुनिये।
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वर्तमान परिचय इस जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रकी कौशाम्बी नगरीमें बहुत समयसे इक्ष्वाकुवंशीय राजाओंका राज्य चला आ रहा था। कालक्रमसे उस समय वहां धरणराजा राज्य करते थे। उनकी स्त्रीका नाम सुसीमा था सुसीमा सब गुणोंकी अन्तिम सीमा-अवधि थी। उसमें सभी गुण प्रकर्षताको प्राप्त थे। ___ जब उक्त अहमिन्द्रकी आयु वहांपर सिर्फ छह माहकी बाकी रह गई थी तभीसे महाराज धरणके घरपर प्रति दिन आकाशसे करोड़ों रत्न वरसने लगे। रत्नोंकी वर्षा देखकर 'कुछ भला होनेवाला है' यह सोचकर राजा अपने मनमें अत्यन्त हर्षित होते थे। महारानी सुसीमाने माघ कृष्णा षष्टीके दिन चित्रा नक्षत्रमें सोलह स्वप्न देखनेके बाद अपने मुंहमें प्रवेश करते हुए एक हाथीको
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