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________________ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * ७ DESC- भी तिरस्कृत करती थी तब नर देवियोंकी बात हो क्या थी? दोनों दम्पति सुख पूर्वक अपना समय बिताते थे उन्हें किसी प्रकारकी चिन्ता नहीं थी। ऊपर जिस अहमिन्द्रका कथन कर आये हैं उसकी वहांको आयु जब सिर्फ छह माहकी बाको रह गई तबसे राजा दृढ़ राजाके घरपर प्रतिदिन असंख्य रत्नोंकी वर्षा होने लगी। रत्न वर्षाके सिवाय और भी अनेक शुभ शकुन प्रकट होने लगे थे जिससे राज दम्पति आनन्दसे फूले न समाते थे । एक दिन रात्रि के पिछले पहरमें महारानी सुषेणाने सोते समय ऐरावत हाथीको आदि लेकर सोलह स्वप्न देखे और स्वप्न देखनेके बाद मुंहमें प्रवेश करते हुए एक गन्ध सिन्दुर-मत्त हाथोको देखा । सबेरा होते ही उसने पति देवसे उसका फल पूछा राजा दृढ़ राज्यने अवधि ग्यानसे विचारकर कहा कि आज तुम्हारे गर्भ में तीर्थकर पुत्रने अवतार लिया है । पृथिवो तलमें तीर्थकरका जैसा पुण्य किसीका नहीं होता है । देखो न ? वह तुम्हारे गर्भ में आया भी नहीं था कि छह माह पहलेसे प्रतिदिन असंख्य रत्न राशि बरस रही है। कुवेरने इस नगरीको कितना सुन्दर बना दिया है। यहांकी प्रत्येक वस्तु कितनी मोहक हो गई है कि उसे देखते जी नहीं अघाता। यहां राजा, रानीको स्वप्नोंका फल बतग रहे थे वहां भावि पुत्रके पुण्य प्रतापसे देवोंकी अचल आसन भी हिल गये जिसमें समस्त देव तीर्थंकरका गर्भावनार समझकर उत्सव मनानेके लिये श्रावस्तो आये और कम-क्रमसे राज मन्दिरमें पहुंचकर उन्होंने राजा रानोको खूब स्तुतिको तथा उन्हें स्वर्गीय वस्त्राभूषणोंसे खूब सत्कृत किया । गर्भावतारका उत्सव मनाकर देव अपने अपने स्थानोंपर वापिस चले गये और कुछ देवियोंको जिन माता, सेवाके लिये वहींपर छोड़ गये । देवियोंने गर्भ शुद्धिको आदि लेकर अनेक तरहसे महारानी सुषेणाकी शुश्रुसा करनी प्रारम्भ कर दी । राज दम्पति भावि पुत्रके उत्कर्षका ख्याल कर मन ही मन हर्षित होते थे। जिस दिन अहमिन्द्र ( भगवान संभवनाथके जीव) ने सुषेणाके गर्भ में अवतार लिया था उस दिन फाल्गुन कृष्ण अष्टमीका दिन था, मृगशिर नक्षत्रका उदय था और प्राची दिशामें बाल सूर्य कुमकुम रङ्ग वरषा रहा था । देव कुमारियोंकी शुश्रूषा और विनोद भरी वातानसे जब रानीके गर्भके दिन सुखसे वीत गये उन्हें गर्भ AASHAALAaina % 3ER - - -- । D १३
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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