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चायक समकित सास्वती पावै । दरिशन मोहनीप: चयोपस्म हुवे जब, क्षयोपस्म समकित जीवने श्रावै पा ॥ २० ॥ चारित्र मोहनीय कर्म उदय सुं, सर्व व्रत चारित्र नहीं श्रावै, चारित्र मोहनीय उपस्म हुयां सें । उपस्म चारित्र निरमल पावे ||पा || ॥ २१ ॥ चारित्र मोहनीय जाबकक्षय होयां, तायक चारित्र श्रावै श्रीकार | चारित्र मोहनीय क्षयोपस्म हुयांथी, क्षयोपस्म चारित्र पामें जीव प्यार || पा||२२ जीव तथा उदय भाव निप्पन्ना, तैतो कर्म तणां उदय सें पिछायो । जीवरा दायक भाव निप्पन्ना, ते कर्म तयांचायक से जाणो || पा || २३ || जीव तया क्षयोपस्म भाव निष्पन्ना, ते कर्म तो तयोपरम ताम । जीवरा उपस्म भाव निष्पना, ते उपस्म कर्म हुयां से नाम || पा ॥ २४ ॥ जीवरा नेहवा २ भांव निप्पना, ते जेहवा २ है जीवरा नांम | नांम पाया कर्म त संजोग बिजोग, तेहवा हिन ज कर्मोश नांम है ताम ॥ पां ॥ २५ ॥ ॥ भावार्थ ॥
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ज्ञानावरणीय दरिशनावरणीय मोहनीय अंतराब ये प्यार घातिक कर्म है येह एकान्ति पाप हैं इन्होंने जीवके निज गुलौकी घात किया है इसलिये इन्हें घातिक कर्म कहते हैं, जैसे भांकाल