________________
(६) ॥ पा॥ ७ ॥ ज्ञानाबरणी कर्म क्षयोपस्म होवे । जवतो पामें छै जीव च्यार ज्ञान । केवल ज्ञानावरणी क्षयोपस्म न होवै । या तो क्षय हुश्रां पामें छै केवल ज्ञान ॥ पा ॥८॥ दरिशनावरणी कर्मरी नव प्रकृति छै । तेतो देखवा ने सुणवादिक अाडी। जीव ने जावक करदेवं आंधो । त्यांमें केवल दरिः शनाबरणी सबमें जाडी पाVE|चक्षु दरिंशना बरणी कर्म उदयसुं। चतुरहित होवै अंध अयाण ।। अवतु दरिशनाबरणी कर्म रैजोगै च्यारूं इंद्रिया री पडजाय हांण ॥ पा॥१०॥ अवधि दरिशनां वरणीय कर्म उदयसें, अवधि दरिशण पामें नहीं जीवो। केवल दरिशना बरणीय कर्म प्रसंगे, उपजै नहीं केवल दरिशण दीवो ॥ पा ॥११॥ निद्रा सूतो सुखे जगायो जागै छै, निद्रा २ उदय दुःखे जागै छै ताम । वैठा ऊभां जीवनें नींद ज श्रावै, तिथा नींद तणों छै प्रचला नाम ॥ पा ।। १२ ।। प्रचला २ नींद उदय से जीवनें, हालता चालतां नींद ज पावै । पांचमी नींद छै कठिन थीणोदी, तिण नींदसें जीव जावक दब जावै ॥ पा ॥१३॥ पांच निद्रा ने च्यार दरिशनावरणी थी, जीव अंध