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(५८) बन्छा सें पुन्य नहीं नापजै, पुन्यतो सहजै लागे छै श्राय हो लाल । तेतो लागै छै निर्वद्यजोग सें, निरजरारी करणी सूं हाय हो लाल पुन्य५॥ भली लेश्या भला परिणामसे, निश्चयः ही निरजग थाय हो लाल । जब पुन्य लागै छै जीवरै, सहज सभावै हाय हो लाल ।।पुन्ग।।५६|| जेकर णी करै निरजरातणी, पुन्य तणी मन मांही धार हो लाल ! तेकरणी खोयने नापडा, गया जमारो , हार हो लाल ॥ पुन्य ॥ ५७ ॥ पुन्यतो चोस्पर्शी कम छै, तिणरी बान्छा करै ते मूढहो लाल । त्यां कर्म धर्म नहीं ओलख्यो, करि करि मित्थ्यात्वनी सदहो लाल ।। पुत्य ॥ ५८॥ जे पत्यथी चस्तु मिलै तिके, त्यानें त्याग्यां निरजरा थाय हो लाल । ज्यो पुन्य भोगवैग्नद्धी थको, तिणरै चिका णा कर्म बंधाय होलाल ।। पुन्य ॥ ५६ ॥ जोडकी धी छै पुन्य भोलखायवा, श्रीजी द्वारा मंझार हो 'लाल । सम्वत् अठारह पंचावनें। जेठ बुदि नवमी सोमवार हो लाल || पत्य ॥६॥पत्यरी करगी निवध आज्ञाम झे. तिगारी सूत्र में छै साख हालाल, ते थोडी सी प्रगटकरूं, सुणज्यो चित्त ठिकाणे राख होलाल ॥ पुन्य ॥.६१ ॥