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२३- निर्माण शुभनाम कर्मस शरीर गूम्मडा फुनसियां रहित रहता है। २४ - पंच इंद्रिय शुभनाम कर्म से पांचइंद्रिय नैरोग्यता पाता है । २५ - श्रदारिक शरीर शुभनाम कर्म से मनुष्य और तीर्थच काशरीर अच्छा होता है ।
२६- वैक्रे शरीर शुभनाम कर्म से देव शरीर तथा वैक्रे लब्धी से किया हुआ शरीर अच्छा होता है ।
२७ - आहारिक शरीर शुभनाम कर्मसे आहारिक लब्धी का कीया हुआ शरीर अत्यन्त खूब सूरत होता है ।
२८ - तेजस शरीर शुभनाम कर्म से घुगलोंको अच्छी तरहें पचाता है । २६- कार्मण शरीर शुभनाम कर्मशे शुभ पुन्य मयी कर्मोंका संगी होता है ।
३० - श्रदारिक उपान्ग शुभनाम कर्मसे श्रदारिक शरीर के हात पांव आदि अच्छे होते हैं ।
३१- वेक्रे शरीर उपान्ग शुभनाम कर्मसे चेक्रे शरीर के हात पांव श्रादि उपान्ग श्रच्छे होते हैं ।
३२- श्रहारिक उपान्ग शुभनाम कर्मसे श्राहारिक शरीरके हात पांव श्रादि उपान्ग अच्छे होते हैं ।
३३ - वज्र ऋषब संघयण नाम कर्मसे बज्र समान शरीर होता है । ३४- सम चौरान्स संस्थान नाम कर्मस समचोरस श्राकार होता है । ३५ - भलाब १ भलागंध २ भलारस ३ भला स्पर्श ४ ये चारूं शुभनाम कर्मसे मिलता है ।
३६- पंच इंद्रिय तिर्येच युगलियाका श्रायुष कर्म
४० - मनुष्य आयुष्य कुर्म ।
४१ - देव श्रायुज्य कर्म
४२ - थिंकर नामकर्म से तीर्थकर धर्मोपदेशक सुरासुर सेवक तीन लोक के पुजनक होते हैं ।
उपरोक्त साता वेदनी कर्म १ ऊंच शोधकर्म २ ये दोनू तथा श्रा. युष्य कर्मकी ३ शुभ प्रकृति और नाम कर्मकी ३७ प्रकृति सर्व ४२ प्रकार करिके जीव पुन्य भोक्ता है, जैसी ? प्रकृति वयांसिस में से भोगे गा उन्हें पुन्य प्रकृति जानना ।