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जीव उज्वलथायो, तिमनेनिर्जरा कहि जिनरायो, ते निर्जराछै भाव जीवो, तुटै ते कर्म पुद्गल अजीवो ॥५०॥ समस्त कर्मी से जीव मुंकायो, तिणसूं ए जीव मोक्षकहायो । मोक्ष ते पिण छै भाव जीव, मुंकीयागया कर्म श्रजीव ॥५१॥ शब्दादिक कांमने भोग, त्यांनँ त्यागीने पाडै वियोग । ते तो संवर छै भाव जीव, तिणसं रूकिया छै कर्म अजीव ॥ ५२ ॥ शब्दादिक कामने भोग, तेहनूं करै संजोग, ते तो श्राश्रव छै भावजीव, तिणसूं लागे छै कर्म अनाव ॥ ५३ ॥ निरजराने निरजरानी करणी, यह दोहीं जीवने प्रादरणी, यह दोन छै भाव जीव, तूटाने तूटै कर्म अजीव ॥ ५४॥ काम भोग सैं पामें श्रारामों, ते संसार थकीजीव स्हामों, ते श्राश्रव छै भावजीव, तिणसू लागै छै कर्म अजीव ॥ ५५॥ काम भोग थकी नेह (टो, ते संसार थकी छै अंपूठो । ते संबर निर्जरा भाव जीव, जब रूकै तुटै ते कर्म अजीव.॥ ५६ ॥ सावध करंणी छ सर्व प्रकार्ज तेतो सगलाछै कर्तव्य अनार्ज, ते सगला छै भाव जीव, त्यातूं लागै कर्म अजीब . ॥ ५७ ॥ जिन श्राज्ञा पालै रुडी ति, ते पिण भाव