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(२१)
नं० मूल पाठ
टीका
भावार्थ
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विविधत
या कावि- फर्मों को विधूणाता है थाने करणी करराविकत्ताविकर्तयिता निरजरता है विखेरता है इस से घा
वाछेदेकः विकक्षा कर्मणामेव
जिपति-प| १७/ जएतिवा तिशय गम सर्व कर्मों को जीत कर जया होता है
नाजगत्
जन्तुत्ति-ज- एक समय में लोकांत जाता है ऐसाशी. १८ जंतूतिवा
ननाजन्तु | ध्रचलने वाला है इस लिए जन्तु है
जोणीति जोणीएति- योमिरन्ये-चौरासी लक्ष प्रकारकी योनियों में उप.. १६ धावामुत्पाद-जता है इसलिए इसका नाम योनि है
कत्वात्
स्वयंभवना यह जीव स्वयं सदा अचल है इस को २० सयंभूतिवा
त् स्वयम्भः किसीने भी पैदा नहीं किया है
सह शरीर-शरीर के अन्तर रहता है ससरीरी है ससरीगणेति शससास्ते इसका नाम शरीर है तिवा | रीरी
नायकः क-कौ का नायक याने मालिक है निजसु. २२ नायातिषार्मणां नेता ख दुःख का दायक है इ.नायक है
अन्तमध्यरू
पत्रात्मा न सर्व शरीर में व्याप्त है पुगलों में लोली २३/ यातिवा शरीररूप भूत होके निज सरूपको दवाया है ।
इत्यन्तरात्मेति
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