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(१८३) खाली ठोर न कोयोनी ॥ ज्यु जीव भरयो कर्मी . थकी । प्रा श्रोपमा देशथकी जोयोजी ॥ बं ॥ ॥ २४ ॥ असंख्याता प्रदेश येक जीवरा । ते असंख्याता जैम तलावोजी ॥ सघला प्रदेश भरया कर्मी थकी ।। जाणे भरी चोखूणी वावोजी ।।बी। ।। २५॥ इक इक प्रदेश छै जीवरो । तिहां अनन्ता कर्मारा प्रदेशोजी ।। ते सघला प्रदेश भरिया छै बाव ज्यु ! कर्म पुद्गल कियो छै प्रवेशोजी॥ ॥ 4 ॥ २६ ॥ तलाव खाली हुवै छै किण विधै। पाहिलां नालो देवै रूंधायोजी ॥ पछै भोरियादिक छोडै तलावरी । जव तलाव रीतो होय जायो जी॥ ६ ॥ २७ ॥ ज्यू आश्रव नाला रूंधवें । तपस्या करै हर्ष सहितोजी ॥ जब छेहडो अावै सर्व कर्म नूं । तब जीव हुवै कर्म रहितोजी ॥ब। ॥ २८॥ कर्म रहित हुवां जीव निरमलो । तिण जीव ने काहिजे मोखोजी ॥ ते सिद्ध हुवो है साल स्वतो । सर्व कर्म बंध करदियो सोखोजी ।।।। ॥ २६ ॥ जोड कीधी के बंध औलखायवा । श्रीजीद्वारा शहर मंझारोजी ॥ सम्बत् अठारे वर्ष . छप्पनँ । चैत्रवदवारस शनिवारोजी।ब।।३०॥इति।।