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________________ ( १२६ ) इस्यादिक अनेक तरह से तीन योल कहे हैं सो सर्व पोल माधव तथा संबर है, अर्थात् संजती है सो संवर है असंजती आश्रय है और संजतासंजती पाश्रव संबर दोनूं है, ऐसे ही सब बोल जानना, तात्पर्य श्राभव कम होने से संबर वधता है और संवर कम होने से आश्रव वधता है, विवेकी जीवों को विचारणा चाहिये कि कोनसा द्रव्य घटा और कोनसा वधा, संवरका प्रतिपक्ष आश्रवा , है, पाश्रवका प्रतिपक्ष संवर है, यदि आश्रव अजीव है तो संबर भी अजीव है जो संवर जीव है तो अाधव भी जीव है, सतरह प्रकारका संजम है सो तो व्रत संबर द्वार है और वही सतरह प्रकारका असंजम है सो अव्रत श्राश्रव द्वार है, स्वामी श्री भीखनजीका कहना है कि न्यायवादी और मोक्षाभिलाषी जीवों को निरपक्ष होके श्राश्रव पदार्थको यथा तथ्य श्रद्धना चाहिये तथ समदृष्टी होंगे, श्राश्रव पदार्थ को जीव श्रद्धानेको पाली शहर में ढाल जोडके कहा है, सम्वत् १८५५ श्रासोज सुद १४ मंगलवार, जिसका भावार्थ मेरी तुच्छ बुद्धि प्रमाण किया इस में कोई अशुद्धार्थ हुना हो उसका मुझे वारम्बर मिच्छामि दुक्कडं है। ॥ इति पञ्चम श्राश्रव पदार्थ ।। आपका हितेच्छू ... . श्रा० गुलाबचंद लूणिया - ॥ अथ षष्टम संबर पदार्थ ।। ॥दोहा॥ संबर पदार्थ छट्टो कयो । तिणरा थिर भूत प्रदेश ॥ श्राश्रव द्वारने रूंधणों । तिणसुं मिटजाय कर्म प्रवेश ॥१॥ श्राश्रव द्वार कमें श्रावानां
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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