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७-मृषावाद प्राश्रय अर्थात् झूठ बोले सो पाश्रय, झूठ बोले सो
जीव है, झूठ बोले सो जीव के ही परिणाम है।" -चोरी कर ते आश्रव कहा है, चौरी करै सो जीध है, मदता दान लेने को जीप परिणम्या लो जीवके परिणाम है, तथा चौरी करने के परिणाम है सोही प्राभव है। . -मैथुन सेवेते प्राधव कहा है, मैथुन सेवै सोजीव है,मैथुन सेने
के परिणाम जीव के हैं लोही अाधव है। • १०-परिप्रहा रणने सो पाधव, परिमहा रस्ने सौजीव है, जीव के
परिणाम है सोही प्राथव है। ११-श्रोत १ घस् २ प्राण ३ मिहा ४ स्पर्श ५ यह पाचूं इन्द्रियों
को मोकली मेले अर्थात् शब्दादिक तेवीस विषयोपे राग द्वेष आवै सो प्राभव है, इन्द्रियों को मोकली मेले सो जीव है। श्रोत इन्द्री का स्वभाव ३ प्रकार के शब्द सुनने का, चकू इन्द्री का स्वभाष ५ प्रकार के वरण देखने का, प्राण न्द्री का स्वभाव २ प्रकार के गंध सूंघने का, रस इन्द्रीका स्वभाव ५प्रकार के रसों का स्वाद जानने का, और स्पर्श इन्द्री का स्वभाष ८ प्रकार के स्पर्श भोगने का है, पांचू इन्द्रियां हैं सो तो पायोप्सम भाव है परंतु इन्द्रियों की विषय में लिप्त रहना लो जीव के भाव है, मोह कमादय से विषयी होके राग
द्वेष करै सो प्राभव है जीव के परिणाम है। १६-मन १ यधन २ काया ३ मोकली मेले सो अधव कहा है
अर्थात् तानूं लोगों की प्रवर्तना जीयकी है। १६-भंडोपगरण से मजयणां करै सोमाभव, अर्थात् वसपात्र
श्रादि वस्तुवों से अपतना करने के भाव जीप के है सोही
प्राधव ह। २०-सुचिकुशंग सेवै ते पाश्रष जीव है जोषके परिणाम है सोही ' भाभव है।