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Fatatutikatatuntstatute thistatuttituttitutstattatra २८. कविवरवनारसीदासः। दीवान कोतवाल बरीकी ओर गये । ससुरालवालोंसे भेट हुई। आदर सत्कार होने लगे। ससुरालवाले वडे प्रतिष्ठित पुरुष थे, उनके भेट मिलापसे ही कोतवालकी साक्षी पूरी हो गई, वे झख सी है भराये लौट आये और हमसे कहने लगे "आप सबै साहु है, हम लोगोंसे अपराध हुआ जो आप लोगोंको इतना कष्ट पहुंचाया, माफ कीजियेगा । मैंने कहा आप राजा हम प्रजा है। राजा प्रजाका ऐसा ही सम्बन्ध है, इसमें आपका कोई दोष नहीं हैजो हम कर्म पुरातन कियो। सो सब आय उदय रस दियो। भावी अमिट हमारा मता। इसमें क्या गुनाह क्या खता॥ * इस प्रकार बातचीत करके दीवानादि लज्जित होते हुए अपने । २ घर आये । मैंने एक दिन और भी मुकाम किया । छह सात
सेर फुलेल लेकर हाकिम, दीवान, कोतवाल सक्की भेट में दिया। शवे बहुत प्रसन्न हुए । अबसर पाकर मैंने उनसे कहा आपके अनगरका सराफ ठग था, हम लोग मुफ्तम फसाये गये थे । यद्यपि अहम लोग अपने भाग्यसे बच निकले, परन्तु उस ठगके विषयों * कुछ भी विचार नहीं किया गया। गरीब ब्रामणोंके रुपये दिला
देना चाहिये, वे व्यर्थ ही लूट लिये गये हैं। इसपर हाकिमाने अलजित होते हुए कहा, हमने आपके विना कहे ही उसको पक* डनेकी व्यवस्थाकी थी, परन्तु खेद है कि, मेद खुलनेके पहिले ही वे दोनों यहां से लापता हैं । अतः लाचारी है।
शामको महेश्वरी शाह आ गये, आनन्द मंगल होने लगे । शेरके । पंजेसे छुटकारा पाया, सवेरे ही सब लोग चल पडे । नदी के पार होते हुए विश्लोग मार्गमें आडे पड गये और लगे दाढ़े मारकर रोने । हमारे रुपये लूट लिये गये, अब हम कैसे जीवेगे | अब तो
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