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६४ कविवरचनारसीदासः । भाया, तव कचौरीवालेका हिसाब कर उसके रुपया चुका दिये । कुल ।। ३१४)चौदह रुपयाका जोड हुआ। पाठको! वह कैसा समय था, जब
आगेरे सरीखे शहरमें भी दोनो वककी पूरी कचौरियोंका खर्च केवल दो ।
रुपया मासिक था! और आज कैसा समय है, जब उनदो रुपयोंमें एक 3 सप्ताहकी भी गुजर नहीं होती !! भारतवासियोंको इस अंग्रेजी राज्यमें से भी क्या वह समय फिर मिलेगा? इस सांझेके व्यापारमें दो वर्ष । पूरे हो गये, पर विशेष लाभ कुछ नहीं सूआ, इससे बनारसी विषादयुक्त हुए और आगरा छोड़ देनेका विचार किया। जनसाहुसे सांझेका सव हिसाब किया तो, दो वर्षकी कमाई २००) निकली, और इतना ही खर्च चैठ गया। चलो छुट्टी हुई, हिसान घरावर हो गया । कविवर कहते हैं
निकसी थोथी सागर मथा।
भई हींगवालेकी कथा ॥ लेखा किया लखतल पैठि,
पूंजी गई * * में पैठि ॥ ३६७ ॥ आगरा छोड़के आप खैराबाद (ससुराल) को जानेके विचारमें थे, से कि एकदिन बाजारसे लौटते हुए सड़कमें एक गठरी पड़ी हुई मिली,
उसमें आठ सुन्दर मोती बंधे थे। बड़ी खुशी हुई। धनार्थी मोहीजीवको प्रसन्नता ओर कब होगी ? बड़े यत्नसे मोती कमरमें लगालिये। और दूसरे दिन रास्ता नापने लगे। रात्रिको श्वसुरालयमें पहुंचे है बडे आदरसे लिये गये; सबको प्रसन्नता हुई।समयपर भार्यासे एकान्त । समागम हुआ । सामान्य संयोगसे, सामान्य प्रेमसे, सामान्य आनन्दसे हमारे दम्पतिका यह संयोग, प्रेम, आनन्द कुछ विलक्षण ही था।
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