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Prakatatatathakathkartatistattattatrkatinket १२३२ जैनग्रन्थरताकरे
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होत विभूति दानके दिये।
यह परपंच विचारै हिये। भरमत फिरै न पावइ ठौर ।
ठानै मूढ औरकी और, या चेतनकी० ॥ ३ ॥ बंध हेतको करै जुखेद ।
जानै नहीं मोक्षको भेद। मिटै सहज संसार निवास। ___ तब सुख लहै वनारसिदास, या चेतनकी० ॥४॥
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राग रामकलीचेतन तू तिहुकाल अकेला, से नदी नावसंजोग मिलै ज्यो, त्यों कुटंबका मेला, चेतन०॥टेक ॥ ३यह संसार असार रूप सब, ज्यों पटपेखन खेला। सुखसंपति शरीर जलवुदबुद, विनशत नाही बेला, चेतन ॥१॥
मोहमगन आतमगुन भूलत, परी तोहि गलजेला. 3 मैं मैं करत चहूं गति डोलत, बोलत जैसे छेला, चेतन० ॥२॥ ॐ कहत वनारसि मिथ्यामत तज, होय सुगुरुका चेला। 3 तास वचन परतीत आन जिय,होइ सहज सुरझेला, चेतन० ॥३॥
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१वकरीका बचा.