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१२१६ जैनग्रन्थरखाकरे स्मक द्रव्य, एक शुद्धनिश्चयात्मक द्रव्य, एक मिश्रनिश्चयात्मक द्रव्य । अशुद्धनिश्चय द्रव्यकों सहकारी अशुद्ध व्यवहार, मिश्रद्रव्यको सहकारी मिन व्यवहार, शुद्ध द्रव्यको । ॐ सहकारी शुद्धव्यवहार।
अव निश्चय व्यवहार को विवरण लिख्यते । निश्चय तो अभेदरूप द्रव्य, व्यवहार द्रव्यके यथास्थित भाव । परन्तु विशेष इतनौ जु यावत्काल संसारावस्था तावकाल व्यवहार कहिये. सिद्ध व्यवहारातीत कहिये, यात । जु संसार व्यवहार एकरूप दिखायौ. संसारी सो व्यवहारी, व्यवहारी सो संसारी।
अब तीनहूं अवस्थाको विवरण लिख्यते । यावत्काल मिथ्यात्व अवस्था, तावत्काल अशुद्ध निश्चयात्मक द्रव्य अशुद्धव्यवहारी । सम्यग्दृष्टी होत मात्र चतुर्थ । गुणस्थानकस्यौं द्वादशम. गुणस्थानकपर्यन्त मिश्रनिश्चयात्मक द्रव्य मिश्रव्यवहारी । केवलज्ञानी शुद्धनिश्चयात्मक शुद्ध। व्यवहारी।
अब निश्चय तौ द्रव्यको सरूप, व्यवहार संसारा
वस्थित भाव, ताको विवरण कहै हैं,मिथ्यादृष्टी जीव अपनी स्वरूप नाहीं जानतौ तातै परस्वरूपविषै मगन होय करि कार्य मानतु है ता कार्य करती है। छतौ अशुद्धव्यवहारी कहिए । सम्यग्दृष्टी अपनौ स्वरूप परोक्ष प्रमानकरि अनुभवतु है । परसचा परस्वरूपसौं अ
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