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बनारसीविलासः २०३ दिशि औ विदिशि दोऊ जगतकी भरजाद,
पढ़िये शबद गड़िये नु जड़ साब है। नाचिये सुचित्त चपलाय गाइये सुधुनि,
न्हाइये सुजन शुचि खाइये सुनाव है। परको संबोग सुतो योग विषै स्वाद भोग,
दीने लीने मायासो तो मरमको काज है। इनते अतीत कोऊ चेतनको पुंज तोमें, ___ ताके रूप जानवेको जानवो इलान है ॥ २॥
लोमवन्त मानुष जो औगुण अनन्त तामें, ___ जाके हिये दुष्टता सो पापी परधीन है। जाके मुख सत्यवानी सोई उपको निधानी,
बाकी मनसा पवित्र सो तीरथथान है ।। नामैं सज्जनकी रीति ताकी सवहीसों गीति, ___ जाकी मली महिमा सो आमरणवान है।
जामें है सुविद्या सिद्धि ताही के अटऋद्धि, ___जाको अपजस सो तो मृतक समान है।॥ ३ ॥ कंचनभंडार पाय रंच न मगन हुने, __पाय नवयोवना न हुने जोबनारसी ।
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धपुखको बीचके दो पाद ऐते हैं* ऐसी असियारा कालपंचमके वीचपड़ी,
धारा बिनीकूप वीच पडी इ वनारसी ।