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१३० कविवरवनारसीदासः । Hinmarwarewer mimummmmwww.me
बंगालमें सुलेमान सुलतान राज्य करता था। सुलेमान अपने ३ साले लोदीखानयर बहुत प्यार करता था, और उसे अपने पुत्रके स्थानापञ्च मानता था । सुलेमानके कोई पुत्र नहीं था । उक लोदीखानके दीवानका नाम धन्नाराय श्रीमाल था । दीयाब बड़ा उदारशैल और कृपाल था । उसका आश्रयपाकर ५०० श्रीमाल यहां निवास करते थे । खरगसेनजी इन्हींकी सेवामें जाकर उपस्थित हुए । खरगसेनकी आयु अब भी छोटी थी । परन्तु वाक्पटुना और विचारशीलता देखके थोड़े दिन अपने आश्रित रसके दीवान चाहिनने । इन्हें चार परगनोंका पोतदार बना दिया । खरगसेन परगनामें जाके अमलदारी करने लगे।छह सात महीने के पीछे दीवान साहिवने शिखरजीकी मात्राका संघ चलाया, और कुछ दिनों में वे याचासे लौटके घर आ गये । उस दिन सामायिक करते २ उदरशूल उत्पन्न हुआ, और तत्काल ही उनका प्राण पखेरू उड़ गया । कवियर कहते हैंपुण्यसंजोग तुरे रथपायक, माते मतंग तुरंग तवेले मानि विभौ अगयो सिरभार, कियो विसतार परिवह लेले बंध वढाय करी थिति पूरन, अन्त चले रठि आप अकेले। हारि हमालकी पोटसी डारिकै, और दिवालको औदव्है खेले
सुलेमान किरानी जातिका पठान था।वह हिच सन् ९५६(संवत् ।। १६०६ से सन् १८१ (संवत् १६३०)तक वगालका स्वतंत्र हाकिम रहा था। उसकी राजधानी गोहमें थी, जो वंगालका एक पुराना शहर
था और जिसपरसे बंगालको अब तक गोडबंगाल कहते हैं, और पहिले ॐ गौडदेश भी कहते थे । कविवरने संवत् १६२५ नै बगालन्छ राजा माहमुढेमानको लिखा है, सो बहुत ठीक है । पीछे सन् ९४३ (सवत् १६३२) में अकवरकी फौजने सुलेमानले बेटे दाजदखास बंगाला और उड़ीसा छीन लिया।
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