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बनारसीविलासः
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यह सरखती हंसवाहिनी प्रगट रूप, __ यह भवमेदिनी मवानी शंमुघरनी। यह ज्ञान लच्छनसों लच्छमी विलोकियत,
यहै गुणरतनभंडार भारभरनी ॥ यहै गंगा त्रिविधि विचारमें त्रिपथ गौनी, __यह मोखसाधनको तीरथकी धरनी। यहै गोपी यहै राधा राधै भगवान मावै,
यह देवी सुमति अनेकभांति वरनी ॥ ८॥ यहै परमेश्वरी परम ऋद्धि सिद्धि साथै, __ यहै जोग माया व्यवहार ढार ढरनी।
यहै पदमावती पदम ज्यों अलेप रहै, __यहै शुद्ध शकति मिथ्यातकी कतरनी ॥ यहै जिनमहिमा बखानी जिनशासनमें,
अहै अखंडित शिवमहिमा अमरनी। यहै रसभोगनी वियोगमें वियोगिनी है, - यहै देवी सुमति अनेकमांतिवरनी ॥९॥ । इति श्रीनवदुर्गा विधान.
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