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जैनग्रन्यरवाकरे २११
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तहां मुगल पाई जागीर ।
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१ संवत् १६०८ में मालवा हुमायूके मातहत नहीं था । उस समय हुमायूं हिन्दुस्तानने नहीं था, काबुल में था। संवत् १६०८ में हिजरी सन् ९०८ था, और उस समय मालवे शेरशाहका अमल
था उसकी तरफसे शुजाखा हाकिम था। ___ मालवेका यह हाल है कि वहां भी मुहम्मतुगलको यमन से अलग यादशाही हो गई। आखरी बादशाह महमूदाखिलजीथा, उससे
गुजरातके सुलतान बहादुरने ९ शावान सन् १३५ (चत्र गुदी ११ संवन् १५४५) को मालवा छीन लिया था। * सन् ९४१ (संवत् १५९२) में हुमायूंवादगाहने सुलतानबहा
दुरको भगाकर मालवा लिया ।सन् ९४२ (संवत् १५९३ ) जय बाद माह मालवेसे आगरे और आगरेसे वंगालेको शेरखां पठान लडने गये, तो महमूदाखिलजीके गुलाम मल्लखाने मुगलोंकों निकालकर मालवेमें अमल कर लिया और कादरशाह अपना नाम रस
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लिया।
सन् ९४९ (संवत १५९९) में शेरखान कादिरशाहको निकाल. कर शुजाखांफो मालवेमें रक्ता।
सन् १६२ (संवत् १६१२) में शुजाखां मर गया। उसका * वेटा वापजीद मालवेका मालिक होकर वाजवहादुर कहलाने लगा। से संवत १६१८ में अकबरबादशाहक अनौरान बाजबहादुरको निकालकर मालवेको दिल्ली के राज्यनें मिला दिया ।
इस व्यवस्याने मालूम होता है कि, संयन् १६०८ में जो शुजासां मालवेका मालिक था, वह हुमाका सरदार नहीं शेरखांक सरदार था और उस समय शेरखांके बेटे सलीमशाह मातहत था,।
जानना चाहिये फि, फालपी और गवालियर पावरके समयम हुमायूं वादशाह के अधिकारमें थे।कालपी में यादगाहला चचा यादगार