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बनारसीविलासः
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खेलत अनन्तकाल भये पै न खेद पावे, ___ तीन सौ तेताल राजू मापकी तलको । केई स्वांग धर खेले वरप असंख्य कोटि
केई स्वांग फेर लावै पलक पलकमें ॥ खेले जेते जन्तु ताते खेलने अनन्त गुणे, __वानारसीदास जान ज्योतिकी झलकमें। खेले तें बहुत ख्याल देखे तैं अलप जन्तु,
देखे ते भी खेल बैठे ख्याल है खलकमें ॥२१॥ गुरुमुख तुवक सुबक भरे श्रुत सोर, ___ कालकी लवधि कलचंपी दरम्यानकी । जामकी अगमबुद्धि जोग उपजोग शुद्धि,
रंजकमरथ ज्वाला लागी शुम ध्यानकी ।। इत ज्ञातादल उत मोहसेना आई वन,
वानारसीदास जू कुमक लीजो न्यानकी । जीवे न अवश्य जाके बन्दूककी गोली लागै,
जागै न मिथ्यात जो गोली लागै ज्ञानकी ॥२२॥ घटमें विघट घाट उलट ऊरधबाट,
परगुण साधे ते अनन्त काल तंथको । सुषुमना आदि इला पिंगलाकी सोंज भई,
पटचक्रवेधी गण जीत्यो मनमंधको ।।
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