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yuttarkuteketst.taiokisisteretatiststatuttitute ३३८ जैनग्रन्थरताकरे ,
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प्रशमको अहित अधीरजको बाल हितः
महामोहराजाकी प्रसिद्ध राजधानी है। श्रमको निधान दुरध्यानको विलासवन
विपतको थान अभिमानकी निश दुरितको खेत रोग शोग उतपति हेत; ___ कलहनिकेत दुरगतिको निदानी है।
ऐसो परिग्रह भोग सवनको त्याग जोगः । ___ आतम गबेपीलोग याही भांति जानी है ॥ ४३॥ वहिस्तृप्यति नेन्धनैरिह यथा नाम्भोमिरम्मोनिधि* स्तबल्लोभधनो धनैरपि धनैर्जन्तुर्न संतुष्यति । न त्वेवं मनुते विमुच्य विभवं निःशेपमन्यं भवं यात्यात्मा तदहं मुधैव विदधाम्येनांसि भूयांसि किम् ॥
पदपद। ज्यों नहिं अग्नि अघाय; पाय ईंधन अनेक विधि । ज्यों सरिता धन नीर; नृपति नहिं होय नीरनिधि । त्यो असंख धन बढत; मूढ संतोष न मानहिं । पाप करत नहि डरत; बंध कारन मन आनहिं ।। परतछ विलोक जम्मन मरन; अथिर रूप संसारक्रम । समुझे न आप पर ताप गुन; प्रगट बनारसि मोह भ्रम ॥४४॥
क्रोधाधिकार. यो मित्रं मधुनो विकारकरणे संत्राससंपादने
सर्पस्य प्रतिविम्वमझदहने सप्तार्चिषः सोदरः।
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