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बनारसीविलासः
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जो जिन सुजस करै जन ताकी; महिमा इन्द्र करें सुरलोय । जो जिन ध्यान करतवनारसिध्या मुनि ताके गुण जोया१२॥
गुरु अधिकार।
वंशस्थविलम् । अवद्यमुक्त पथि यः प्रवर्चते प्रवर्तयत्यन्यजनं च निस्पृहः । स सेवितव्यः स्वहितैपिणा गुरुः स्वयं तरंस्तारयितुं क्षमः
परम् ॥ १३॥ अडिल्ल छन्द्र। पापपंथ परिहरहि; घरहिं शुभपंथ पग । पर उपगार निमित्त; बखानहिं मोक्षमग ।। सदा अवंछित चित्त; जु तारन तरन जग । ऐसे गुरुको सेवत; भागहिं करम ठग ॥ १३ ॥
मालिनी। विदलयति कुयोधं वोधयत्यागमार्थ
सुगतिकुगतिमार्गों पुण्यपापे व्यनक्ति । अवगमयति कृत्याकृत्यभेदं गुरुयों भवजलनिधिपोतस्तं विना नास्ति कश्चित् १४
हरिगीतिका रन्द। मिथ्यात दलन सिद्धांत साधक; मुकतिमारग जानिये ।
करनी अकरनी सुगति दुर्गति; पुण्य पाप बानिये ॥ । संसारसागरतरनतारन; गुरु जहाज विशेखिये ।।
जगमाहिं गुरुसम कह बनारसि; और कोड न देखिये ।। १४ ॥
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