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जैनग्रन्थरत्नाकरे
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उसमें कहांतक सफलता हुई है, इसके निर्णयका मार पाठकॉपर ही हैं । यदि वाचकोंने हमारे इस परिश्रमका किंचित् मी आदर किया तो, शीघ्र ही वृन्दावनविलासादि काव्य ग्रन्थ कवियोंके विस्तृत इतिहाससहित दृष्टिगोचर करनेका प्रयत्न किया जावेगा ।
हिन्दीके माननीय पत्रसम्पादकों और समालोचकोंसे प्रार्थना है कि, वे कृपाकर इस ग्रन्थकी आद्यन्त - पाठपूर्वक निष्पक्षदृष्टिसे समालोचना करने की कृपा करें और हम लोगोंके उत्साह और हिन्दीप्रचारकी रुचिको बढा |
बनारसीदासजीके चरित्र लिखने में माननीय मुंशी देवीप्रसादजी सुंसिफ जोधपुर से मुसलमानी इतिहासकी बहुत सी बातोंकी सहायता मिली है, इस लिये यह अन्य और लेखक दोनों उनके आभारी हैं !
ग्रन्थसंशोधन तथा जीवनचरित्र दृष्टिदोषसे तथा प्रमादवशले -यदि कोई मूल रह गई हो, तो पाठकवृन्द क्षमा करें। क्योंकि"न सर्वः सर्वे जानाति " इत्यलम् विद्वद्वरेषु ।
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बम्बई - चन्दाबाड़ी | ३०-९-०५ ई०
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विनयावनत----
नाथूराम प्रेमी । देवरी (सागर) निवासी ।
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