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ज्ञानानन्द रत्नाकर ।
तथा ॥२॥ पारस प्रभु होउ दयाल, विनती लखलीजै ॥ (टेक) भटकत फिरत महाभव वनमें, बहुत भयो बेहाल ॥१॥ नरक त्रियंचनके दुःख भुगते पूरो करके काल ॥२॥ देवनके सुखमें दुःख प्रगटो, जब मुरझानी माल ॥३॥ कठिन २ से नर भव पायो, अब कीजै प्रतिपाल ॥४॥ नाथूराम दोनोंकर जोड़ें, काटो कोंके जाल ॥५॥
तथा ॥३॥ प्रभु दर्शन दीजै मोहि, श्रीमहावीर स्वामी॥ (टेक) दर्शन करत पाप सब नाशें, अशुभ कर्म क्षय होय ॥१॥ तुम हो तारण तरण जिनेश्वर, तुम सम और न कोय ॥२॥ पावापुरसे मुक्ति गये प्रश, कर्म कलंकहि धोय ॥३॥ नाथूराम प्रभुके दर्शनसे, अजर अमर पद होय ॥४॥
आरती ॥१॥ तुम भवोदधि तारण सेत, श्रीजिनदेवहो ॥ (टेक) आरति तुम्हरी मैं करों जिनदेवहो, निज अरति निवारण हेत श्रीजिनदेवहो ॥ १ ॥ दीप किया भ्रम नाशने जिनदेवहो, मग दृष्टि पड़े शिवखेत श्रीजिनदेवहो ॥२॥ नृत्य करों इस हेतुसे जिनदेवहो, भव भ्रमण मिटे दुख देत श्रीजिनदेवहो॥३॥ गावत शुण तुम्हरे प्रभू जिनदेवहो, भव रुदन हरोकर चेत श्रीजिनदेवहो॥ १॥ नाथूराम शिव बासको जिन देवहो, करें आरति भक्ति समेत श्रीजिनदेवहो॥५॥