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ज्ञानानन्द रत्नाकर। यासे सत्य नाम मुनि सुत्रत । नाथ तुम्हारा एवं ॥१॥ मुनि गण तुमसे धारि महावत । करी सदा पद सेव ॥ यासे पति तुम हो मुनि गणके । व्रत दाता स्वयमेव ॥२॥ बिन कारण तुम जग हितकारी । धन्य तुम्हारी टेक॥ को कवि महिमा कहे प्रभूजी । नाहीं गुणोंका छेव ॥३॥ अब प्रभु भव दुःख हरो हमारा। दीन जान सुधि लेव ॥ नाथूराम जिन भक्त दासको। धर्म पोत पर खेव ॥४॥
श्रीनोमनाथ स्तुति ॥ २१ ॥ मैं वंदों श्रीनमिनाथ जिनेंद्र ॥ टेक ॥ पंद्रह मास रन बरसाये । हरि आदेश धनेंद्र ॥ जन्मतही ऐरापति सजके । आये सर्व सुरेंद्र ॥१॥ विनय सहित हरिने प्रभु लेके । थापे आप गजेंद्र ॥ जय जय शब्द करत सब सुरगण गये कनिक नागेंद्र ॥२॥ पांडु शिला पर थापि प्रभूको । न्हौन कराया इंद्र॥ वस्त्राभरण सजाय लाय पुर। सोंपे विजय नरेन्द्र ॥३॥ तांडवं नृत्य नृपति गृह करके । स्वर्ग गये निदर्शद्र ।। नाथूराम जिन भक्त रहो नित । जयवंते तीथेंद्र ॥४॥
श्रीनेमिनाथ स्तुति ॥ २२॥ जगतिपति यदुकुल तिलक विशाल ॥ टेक ॥ पशु बंधन लखि कंकण तोड़े। करुणासागर हाल ॥ मुकुट पटकि.प्रभु संयम लीना । चढ़ि गिरि नारि कृपाल। राज मतीको दिक्षा दीनी । श्रीपति दीनदयाल ॥
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