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ज्ञानानन्द रत्नाकर। ५१
(टेक) जिनराज नाथ त्रिभुवन के। त्रिभुवनके दुःख हर्ता । मुक्ति मगके प्रकाश कर्ता । चरणयुग थारे जो निज हिरदे धर्ता । कर्म हनि मुक्ति वधू वर्ता ॥ जैन ग्रंथों में ऐसा वर्णन गाया । धन्य दिन तुम दर्शन पाया ॥१॥ भये आज सफल पद मेरे । जो तुम तक चल आये। धन्य हग तुम दर्शन पाये।सफल कर मेरेजो पूजनफललाये। धन्य रसना जिन गुण गाये। सफल मममस्तकतुमचरन। तल नाया। धन्य दिन तुम दर्शन पाया॥२॥ महराज इंद्र शत थारी करते पसु विधि पूजा । अन्य तुम सम न देव दूजा । वचन मृदु थारे शशि मिश्रीके खूजा । धरत हिरदे शिव मग सूजा।विरद यह थारा प्रभु त्रिभुवन में छाया । धन्य दिन तुम दर्शन पाया ॥३॥ जिन राज दासकी विनती यह विनती सुन लीजे । नाश बसु विधि अरिका कीजै । वास शिव थल का निज सेवक को दीजै । कार्य तुम से मेरा सीजै । नाथूराम थारे दर्शन को ललचाया। धन्य दिन तुम दर्शन पाया ॥४॥
जिनभजनका उपदेश लावनी ॥ ३३॥ भजन जिनवर का कर त्रिविधि प्रकार । करें भवोदधिपार।
(टेक) अन्य देव सब रागी द्वैपी काम क्रोधकी खान । वीतराग सर्वोत्कृष्ट एक दाता पद निर्वाण ॥